भुवनेश्वर: ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले की एक जिला उपभोक्ता अदालत ने एक नर्सिंग होम को अल्ट्रासोनोग्राफी की सही रिपोर्ट नहीं देने के लिए 10 लाख का जुर्माना लगाया और यह राशि पीड़ित परिवार को देने का आदेश दिया है। गर्भावस्था के दौरान तीन महीने के अंतराल पर तीन अल्ट्रासोनोग्राफी टेस्टिंग हुई। इसके बावजूद रिपोर्ट में बच्चे की शारीरिक विकृति की सही तस्वीर नहीं दी गई।
जगतसिंहपुर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच ने अपने आदेश में रेडियोलॉजिस्ट प्रताप केशरी दास और उनकी पत्नी लिप्सा दास के नर्सिंग होम को बाएं पैर और दाहिनी हथेली के बिना पैदा हुए बच्चे के लिए 10 लाख रुपये की राशि देने का आदेश दिया है। नर्सिंग होम के मालिकों को भी महिला को उसकी मानसिक पीड़ा के लिए 50,000 रुपये और मुकदमेबाजी की लागत के लिए 4,000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया है।
आदेश में कहा गया है, “अगर महिला को भ्रूण की विकलांगता के बारे में सूचित किया जाता तो वह भ्रूण का गर्भपात करा सकती थी। नर्सिंग होम पर महिला के अच्छे विश्वास और उनकी रिपोर्ट के कारण उसने गर्भावस्था को समाप्त नहीं कराया। इस कारण से उसने एक शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे को जन्म दिया। रेडियोलॉजिस्ट ने अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में भ्रूण में विकृति को इंगित किए बिना तीन बार रिपोर्ट जारी किया।” उपभोक्ता अदालत ने अपने आदेश में कहा कि गलत रिपोर्ट देना घोर कमी है।
रेडियोलॉजिस्ट को आदेश प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर राशि जमा करने के लिए कहा गया है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें 10 लाख रुपये प्रति वर्ष 8% ब्याज के साथ देना पड़ेगा।
जगतसिंहपुर जिले के तिरटोल थाना क्षेत्र के जयापुर गांव की 24 वर्षीय महिला बंदना दास और उनके पति मनोरंजन चुली दिसंबर 2020 में अपने पहले बच्चे को जन्म देने के बाद बहुत खुश थे। पटकुरा में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह के बाद अल्ट्रासाउंड परीक्षण के लिए गई।
दिसंबर 2020 और सितंबर 2021 के बीच दास ने जगतसिंहपुर के रहमा इलाके में एलएंडपी नर्सिंग होम में 7 वें सप्ताह (पहली तिमाही), 19 वें सप्ताह (दूसरी तिमाही) और 33 वें सप्ताह (तीसरी तिमाही) में तीन अल्ट्रासाउंड परीक्षण किए। परीक्षणों में कुछ भी असामान्य नहीं पाया गया।