नई दिल्ली: रेलवे के 22 कर्मचारियों द्वारा फर्जी दस्तावेज के सहारे 29 से 32 साल तक नौकरी करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। हैरत की बात यह है कि रेलवे को इसकी जानकारी नौ साल बाद लगी। इसके बाद जांच पूरी करने में विभाग को 21 साल लग गए। इस दौरान फर्जी दस्तावेज पर नौकरी कर रहे लोग रेलवे से वेतन और भत्ता भी लेते रहे।
रेलवे को इस मद में 10 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। कैग की रिपोर्ट से यह मामला सामने आया। कैग की ओर से संसद के शीतकालीन सत्र में रिपोर्ट पेश की गई थी। इसमें कहा गया है कि कैग के जुलाई 2020 को मध्य रेलवे के विद्युत विभाग के कार्मिक अभिलेखों की जांच से पता चला कि मई 1989 से अप्रैल 1992 के बीच खलासी, मिस्त्री, मोटर वैन ड्राइवर के रूप में 22 ने निर्माण संगठन (महानगरी परिवहन परियोजना-रेलवे) में नौकरी हासिल की थी। उनके द्वारा जमा दस्तावेज फर्जी हैं, इसका पता मध्य रेलवे को नौ साल बाद (1998, 2001 और 2004) चला। इस आधार पर रेलवे ने सितंबर 2001 से अक्टूबर 2004 के बीच कर्मचारियों को आरोपपत्र जारी किया।
नसीहत भी काम नहीं आई : कैग ने मध्य रेलवे फर्जी दस्तावेजों की समय पर जांच करने में विफल रहा। कैग इस मामले में जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश करती है। इससे पूर्व कैग ने अप्रैल 2022 में फर्जी दस्तावेजों की मदद से 22 लोगों के रेलवे में नौकरी पाने व समय पर जांच पूरी नहीं करने के बारे में रेलवे बोर्ड के सामने रखा था।
तीन को रिटायरमेंट से चार दिन पहले हटाया
22 फर्जी कर्मचारियों में से 18 को अक्टूबर 2021 में नौकरी से हटाया गया। तीन कर्मियों को सेवा से तब हटाया गया, जब उनकी सेवानिवृत्ति के चार से पांच दिन बचे हुए थे। इन सभी को वेतन-भत्ते मद में रेलवे ने 10.37 करोड़ जारी किए। रेलवे की सतर्कता का यह आलम तब है, जब बोर्ड ने जुलाई 1993 में सभी जोनल रेलवे को पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया कि नौकरी पाने के लिए फर्जी दस्तावेज लगाने वालों को तुरंत सेवा से बर्खास्त कर दिया जाए।