जिन टैक्सपेयर्स के पास सैलरी इनकम और एक प्रॉपर्टी मौजूद है, उनके लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करना बेहद आसान होता है. वे आसानी से आईटीआर-1 फाइल कर सकते हैं. हालांकि, यही बात उन टैक्सपेयर्स के लिए नहीं कही जा सकती है, जिन्हें ज्यादा जटिल आईटीआर-2, आईटीआर-3 या आईटीआर-4 के जरिए अपना रिटर्न फाइल करना होता है.
खासतौर पर इनकम टैक्स विभाग पिछले कुछ सालों से टैक्स नियमों में लगातार बदलाव कर रहा है, जिसकी वजह से टैक्सपेयर्स कुछ न कुछ गलती कर बैठते हैं. 31 दिसंबर की डेडलाइन करीब आ रही है, तो टैक्सपेयर्स को सावधान रहना जरूरी है. आइए कुछ आम आईटीआर फाइलिंग में होने वाली गलतियों को जानते हैं और कैसे आप इनसे बच सकते हैं.फॉर्म 26AS ध्यान से भरें
टैक्सपेयर्स को हमेशा आईटीआर फाइल करते समय फॉर्म 26AS को दो बार चेक करना चाहिए. इसमें व्यक्ति की आय, टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS), एडवांस टैक्स पेड, सेल्फ असेसमेंट टैक्स पेड आदि की जानकारी रहती है. सभी सैलरी वाले लोगों को एंप्लॉयर के फॉर्म 16 और फॉर्म 26AS से अपनी जानकारी को मिलाकर चेक करना चाहिए.
अधूरी या गलत बैंक डिटेल्स नहीं भरें
गलत बैंक डिटेल्स भरना एक आम लगती है. अधूरी या गलत बैंक डिटेल्स भरने से आईटी विभाग के लिए आपके बैंक अकाउंट में रिफंड जारी करने में दिक्कत होती है. और आपको रिफंड दोबारा हासिल करने के लिए जटिल प्रक्रिया करनी पड़ सकती है. समय में अपने रिफंड को क्लेम करने के लिए, यह सुनिश्चित करें कि आपका बैंक अकाउंट नंबर, अकाउंट धारक का नाम और IFSC कोड सही हों.
जिस आय पर छूट है, उसका उल्लेख करें
टैक्सपेयर्स छूट वाली आय का जिक्र नहीं करते हैं या करना भूल जाते हैं. उन्हें लगता है कि क्योंकि आय टैक्सेबल नहीं है, इसलिए उसका जिक्र करने की जरूरत नहीं है. हालांकि, ये सच नहीं है. टैक्सपेयर को आईटीआर फाइल करना होता है, अगर उसकी कुल आय 2.5 लाख रुपये से ज्यादा है.
दो से ज्यादा प्रॉपर्टी के मामले में उनके बारे में बताएं
जहां सभी लोगों के पास दो या उससे ज्यादा प्रॉपर्टी मौजूद नहीं होती हैं, जिनके पास हैं, उन्हें इसकी सूचना देनी चाहिए. इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में संशोधन के मुताबिक, अब दो प्रॉपर्टी को self-occupied क्लेम किया जा सकता है. अगर प्रॉपर्टी पूरे साल खाली रही है और उससे टैक्सपेयर्स को कोई वित्तीय फायदा नहीं हुआ है, तो भी वह टैक्सेबल है.