नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उन राजनीतिक दलों को आवंटित चुनाव चिह्न् और नाम को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो चिह्न् में धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं या उनके प्रतीक धार्मिक अर्थ रखते हैं। सैयद वसीम रिजवी द्वारा अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि याचिका जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) 1951 और संविधान के जनादेश से संबंधित है और इसे अधिनियम की धारा 29ए, 123 (3) और 123 (3ए) के तहत देखा जा सकता है।
याचिका में संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का हवाला देते हुए कहा गया है कि आरपीए की धारा 123 के तहत मतदाताओं को लुभाने के लिए धर्म का इस्तेमाल करना सख्त मना है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ के समक्ष दलील दी कि दो पक्ष जो मान्यता प्राप्त राज्य पक्ष हैं, उनके नाम में ‘मुस्लिम’ शब्द है, और कुछ दलों के आधिकारिक प्रतीकों और झंडे में अर्धचंद्र और सितारे हैं। इनके धार्मिक अर्थ हैं।
भाटिया ने कहा कि उदाहरण के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) पार्टी के लोकसभा और राज्यसभा में सांसद हैं और केरल में विधायक हैं। उन्होंने कहा, “यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या हम राजनीति को प्रदूषित कर सकते हैं?” पीठ ने आरपीए की धारा 123 का हवाला देते हुए पूछा कि क्या यह प्रतिबंध राजनीतिक दलों पर लागू होगा, क्योंकि यह उम्मीदवार को संदर्भित करता है। भाटिया ने कहा कि यदि किसी धार्मिक नाम वाली पार्टी का उम्मीदवार वोट मांगता है, तो वह उम्मीदवार आरपीए और धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करेगा।
मामले में दलीलें सुनने के बाद पीठ ने आयोग और कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी किया।