पिता ने मासूम बच्ची को झील में फेंककर उतारा मौत घाट, खुद भी की आत्महत्या करने की कोशिश, जाने पूरा मामला
बेंगलुरु: उसने बेंगलुरु से बाहर निकलते वक्त अपनी ढाई साल की बेटी के लिए बिस्किट और चॉकलेट खरीदीं. वह गाड़ी की पिछली सीट पर ही उसके साथ खेलता था. लेकिन कर्जदाताओं द्वारा प्रताड़ित किए जाने के विचार ने उसे घर लौटने से रोक दिया और उसने अकल्पनीय किया- अपनी जीवन लीला समाप्त करने की कोशिश करने से पहले बेटी को मार दिया. यह बात कर्ज में डूबे तकनीकी विशेषज्ञ राहुल परमार (45) ने पुलिस को बताई, जो आत्महत्या के प्रयास में बाल-बाल बच गया. उसने पुलिस के सामने दावा किया, ‘वह रोने लगी (उसकी ढाई साल की बेटी) और मेरे पास पैसे नहीं बचे थे. घर लौटने पर और भी बुरी स्थिति मेरा इंतजार कर रही थी. मैंने उसे कसकर गले लगाया और उसे मार डाला. उसके लिए भोजन न खरीद पाने की मेरी मजबूरी ने मुझे यह निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया. मैं उसके साथ खुद को मारने के लिए झील में कूद गया, लेकिन डूबा नहीं.’
अपनी बेटी जिया की हत्या करने और उसके शव को बेंगलुरु-कोलार राजमार्ग पर केंदत्ती के पास एक झील में फेंकने के आरोप में गिरफ्तार किए गए राहुल को पुलिस शुक्रवार को क्राइम सीन पर ले गई. पुलिस सूत्रों ने कहा, ‘राहुल ने कहा कि उसे अपनी बेटी की हत्या का पछतावा है, लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं था.’ राहुल और जिया 15 नवंबर को लापता हो गए थे. राहुल अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने के लिए घर निकला था, लेकिन दोनों वापस नहीं लौटे. उसकी पत्नी भाव्या ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. अगली सुबह, जिया का शव झील में मिला और पुलिस को शक हुआ कि राहुल ने भी आत्महत्या कर ली होगी. उसने झील में कूदकर जान देने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन डूबा नहीं, बच गया.
राहुल ने अपनी नौकरी गंवा दी थी, बिटकॉइन कारोबार में उसे वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा और लूट का झूठा मामला दर्ज कराने के लिए पुलिस जांच का सामना करना पड़ा. उसने घर में मौजूद सोना गिरवी रख दिया था और अपनी पत्नी से कहा था कि उसके गहने लूट लिए गए हैं. वह भावनात्मक तौर पर अपनी बेटी से जुड़ा हुआ था और उन लोगों के क्रोध के डर से खुद को मारने का फैसला किया जिनसे उसने पैसे उधार लिए थे. उसने पुलिस की पूछताछ में कहा, ‘मैं सुबह घर से निकला था, खुद को और अपनी बेटी को मारने की योजना बना रहा था. कई बार, मैंने घर वापस जाने के बारे में सोचा. लेकिन कर्जदाताओं के उत्पीड़न के विचारों ने मुझे वापस जाने से रोक दिया.’