चेन्नई: तमिलनाडु सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% कोटा बरकरार रखने वाले अदालत के फैसले से संबंधित समीक्षा याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की। याचिका में स्टालिन सरकार ने दलील दी है कि समाज में मजबूत वर्ग को भ्रामक तरीके से आर्थिक रूप से पिछड़ा कहकर एक कमजोर वर्ग में छिपाने की कोशिश की गई है। इन वर्गों ने कभी भेदभाव नहीं झेला, हमेशा से मजबूत रहे हैं। इसके अलावा बीते 7 नवंबर को, शीर्ष अदालत की एक पीठ में पांच में से दो ने ईडब्ल्यूएस कोटे के खिलाफ वोटिंग की थी। तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की अध्यक्षता में डीएमके ने आदेश की समीक्षा के लिए 579 पन्नों की एक याचिका दायर की है। यह स्टालिन द्वारा सर्वदलीय बैठक में शामिल होने के बाद आया है। जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक समीक्षा याचिका दायर करेंगे।
याचिका में क्या है
समीक्षा याचिका में तर्क दिया गया है, “यह एक तथ्य है कि उन्हें सामाजिक कलंक का सामना नहीं करना पड़ा है और न ही समाज से भेदभाव किया गया है या नौकरियों या मुख्यधारा से दूर रखा गया है।” “माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कभी भी इस बात की जांच नहीं की कि कैसे “अगड़ी जातियों” को विवादित संवैधानिक संशोधन के तहत “कमजोर वर्गों” के रूप में बुलाया जा सकता है, क्योंकि वे आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं, जबकि वे पहले से ही सरकारी नौकरियों का आनंद ले चुके हैं और पर्याप्त योग्यता हासिल कर चुके हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी और उनके परिवारों को “सांस्कृतिक पूंजी” (संचार कौशल, उच्चारण, किताबें, सामाजिक नेटवर्क या शैक्षणिक उपलब्धियां) प्रदान की जाती हैं जो उन्हें अपने परिवारों से विरासत में मिलती हैं।
पिछड़ा कहकर मजबूत वर्ग को कमजोर दिखाने की कोशिश
याचिका में कहा गया है, “103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 ने कई संपन्न उच्च जाति वाले वर्गों को आरक्षण के लिए पात्र” बना दिया है। बस उन्हें भ्रामक तरीके से आर्थिक रूप से पिछड़े कहकर एक कमजोर वर्ग में छिपाने की कोशिश की है।” इन वर्गों ने कभी भेदभाव नहीं झेला, हमेशा से मजबूत रहे हैं।
इंदिरा साहनी मामले का जिक्र
समीक्षा याचिका में स्टालिन सरकार ने इंद्रा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया। जिसमें सर्वोच्च अदालत ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया था। इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले में न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों पर ही लागू होगा न कि पदोन्नति पर। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय की थी।
याचिका में तर्क दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर “गलती की है” कि आरक्षण को समाप्त करने से जाति व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और एक समतावादी समाज का निर्माण होगा। याचिका में कहा गया है, “इस तरह की खोज सही नहीं है,” जातिगत अत्याचारों को बढ़ाने वाली जाति व्यवस्था के कारण आरक्षण मौजूद है। ईडब्ल्यूएस फैसले के आदेश की समीक्षा की मांग करने वाले अन्य कानूनी आधारों में डीएमके ने 133 करोड़ आबादी को प्रभावित करने वाला फैसला को बताते हुए एक खुली अदालत में सुनवाई की मांग की है।