बीजिंग: चीन में कोरोना को लेकर डरावनी रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो चीन में कोविड-19 के ओमिक्रॉन वैरिएंट का सब वैरिएंट BF.7 तबाही मचा रहा है. सड़कों से ज्यादा अस्पतालों में भीड़ है. हालांकि, चीन की सरकार की ओर से जो आंकड़ें पेश किए जा रहे हैं, वह ज्यादा नहीं है. लेकिन दुनिया इस बात से जरूर वाकिफ है कि चीन की सरकार अपने देश के आंतरिक मामलों पर हमेशा पर्दा डालने की कोशिश करती रही है. ऐसा कोरोना के मामले में पहले भी देखा जा चुका है और एक बार फिर वही गलती दोहराई जा रही है.
कोरोना की शुरुआत यानी साल 2020 से लेकर अभी तक, चीन की सरकार ने देश में कोरोना फैलने की सीमित जानकारी ही सिर्फ दी. वहां की मीडिया ने भी सरकारी आंकड़ों को ही पेश किया. जहां दुनिया ने बढ़ चढ़कर वैक्सीन का इस्तेमाल किया और एक दूसरे देशों ने आपस में आयात-निर्यात कर मदद भी की, वहीं चीन इस मामले में भी शांत रहा.
चीन में कोरोना महामारी के जारी कहर को लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन कुछ प्राकृतिक नियमों के खिलाफ जाकर खड़ा हो गया. जैसे कि जीरो कोविड पॉलिसी. तमाम वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस अंत में तभी थमेगा जब एक हद तक आबादी उससे संक्रमित हो गई हो लेकिन चीन जीरो कोविड पॉलिसी पर अड़ा रहा.
चीन की जीरो कोविड पॉलिसी और लोगों का प्रदर्शन
साल 2022 की शुरुआत में जब अधिकतर देश नियमों को ढीला कर जिंदगी का सामान्य करने की कोशिश कर रहे थे, उस समय चीन ने जीरो कोविड पॉलिसी लागू कर दी. दरअसल कोरोना के मामले में अधिकतर देशों ने यह मान लिया है कि अब उन्हें इस वायरस के साथ जीना सीखना होगा. लेकिन चीनी सरकार इस बात से आज भी इत्तेफाक नहीं रखती है.
चीन की सख्त पॉलिसी से साल 2022 के मध्य आते-आते नुकसान होना शुरू हो गया. इस पॉलिसी ने चीन की आर्थिक तरह से भी चोट पहुंचाई. देश में बेरोजगारी चरम पर आ गई, लोगों के रोजगार बंद होने लगे. इससे लोग भड़क गए और साल के अंत आते-आते लोगों ने बड़े स्तर पर कोविड पॉलिसी के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.
आखिरकार चीन की शी जिनपिंग सरकार को लोगों की बात माननी पड़ी और दिसंबर 2022 में सख्त नियमों को खत्म करने का ऐलान कर दिया गया. पाबंदियां हटाए कुछ ही दिन बीते थे कि एक बार फिर चीन में कोरोना के नए वैरिएंट से तबाही की खबरें आनी शुरू हो गईं.
चीन के लोगों में हाइब्रिड इम्यूनिटी की कमी
जो बीएफ.7 वैरिएंट चीन में तबाही मचा रहा है, वही वैरिएंट भारत में पहली बार जुलाई में ही पहचान लिया गया था. इसके बावजूद भारत में इसने खतरनाक रूप नहीं लिया. इसका कारण है भारत में करोड़ों की आबादी का टीकाकरण और लोगों की हाइब्रिड इम्यूनिटी जो चीन के लोगों में कम है.
दरअसल चीन में जब-जब कोरोना फैला, तभी लोगों पर सख्त नियमों लागू कर दिए गए. इस वजह से लोगों में नेचुरल इन्फेक्शन कम रहा और वहां लोगों में हर्ड इम्यूनिटी ना के बराबर ही पैदा हुई. जिन देशों में अधिकतर आबादी की हाइब्रिड इम्यूनिटी है, वहां कोरोना का कोई भी वैरिएंट काफी कम असरदार है. ऐसे में चीन में अगर अब अगर व्यापक स्तर पर कोरोना फैला तो यह दुनिया का सबसे बड़ा कोविड विस्फोट साबित हो सकता है.
चीन को सिर्फ स्वदेशी वैक्सीन पर भरोसा
कोरोना महामारी के समय भारत समेत कोरोना वैक्सीन बनाने वाले अन्य देश जब दूसरे देशों को टीका निर्यात कर सहायता कर रहे थे, तब चीन सिर्फ अपनी ही वैक्सीन पर टिका हुआ था. यानी चीन को बस अपनी वैक्सीन पर भरोसा था, जिनको चीन में ही बनाया गया था. चीन में लोगों के लिए 7 वैक्सीन बनाई गई. हालांकि, चीन की वैक्सीन पर एक्सपर्ट्स सवालिया निशान खड़े करते रहे हैं.
हाल ही अमेरिकी एक्सपर्ट अली मोकदाद ने चीन को अमेरिकी वैक्सीन mRNA को आयात करने की सलाह दी है. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में प्रोफेसर अली मोकदाद कहते हैं कि अगर लोगों को mRNA वैक्सीन नहीं दी तो अप्रैल महीने तक चीन में हालात गंभीर हो सकते हैं. अली ने कहा कि चीन में जो वैक्सीन लोगों के लिए अप्रूव की गई हैं, वे mRNA की तरह असरदार नहीं है.
हालांकि, चीन ने बीते फरवरी में कोरोना से बचाव की दवा Paxlovid को मंजूरी जरूर दी थी, लेकिन कितनी दवा अभी तक चीन ने आयात की है, इसका कोई आंकड़ा नहीं है.