पलटी मारने में नीतीश, रामविलास को भी पीछे छोड़ेंगे उपेंद्र कुशवाहा!

0 184

पटना: क्या उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार का साथ छोड़ देंगे? क्या उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा एक बार फिर से उन्हें पलटी मारने के लिए मजबूर करेगी? इस तरह के कई सवाल आजकल बिहार की राजनीतिक गलियारे में पूछे जा रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा के बीजेपी को लेकर नरम रुख की चर्चा राजनीतिक गलियारों में काफी पहले से हो रही है। हालांकि खुद उपेंद्र कुशवाहा ने ऐसी खबरों को निराधार बताया है। लेकिन समाजवादी दिग्गज शरद यादव के निधन पर अपनी बात रखते हुए कुशवाहा ने कुछ ऐसी टिप्पणी की कि यह सवाल उठने लगे कि कहीं वो बीजेपी का दामन तो नहीं थामने वाले।

जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष कुशवाहा ने कहा कि शरद यादव आखिरी समय में मानसिक रूप से अकेले हो गए थे। उनकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं था। उन्होंने यहां तक कहा कि भगवान ना करे किसी को ऐसी मौत मिले। कुशवाहा ने यहां तक कहा कि जिन लोगों ने शरद यादव को बनाया उन लोगों ने अंतिम समय में उनसे बात करने तक छोड़ दिया। हालांकि कुशवाहा ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन कयास लगाए जाने लगा कि उनके निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे।

शरद यादव के निधन से कुछ दिन पहले ही जब उपेंद्र कुशवाहा से पूछा गया कि आपको बिहार का डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा है, तो इस पर उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि ना तो मैं कोई संन्यासी हूं और ना ही मैं किसी मठ में बैठ हूं। इस तरह के निर्णय लेने का पूरा अधिकार मुख्यमंत्री जी (नीतीश कुमार) के पास है। कुछ घंटे बाद ही नीतीश कुमार ने साफ मना कर दिया कि जेडीयू की ओर से राज्य में कोई दूसरा डिप्टी सीएम नहीं बनेगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में उपेंद्र कुशवाहा कुछ बड़ा धमाका कर सकते हैं।

बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा की सियासी महत्वाकांक्षा ने उनको राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई। उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनकी नजदीकियां रहीं तो कांग्रेस से भी उनके मधुर रिश्ते रह चुके हैं। यूं तो वे राज्य से केंद्र तक की राजनीति में विभिन्न पदों पर रहे, लेकिन मंजिल की तलाश अभी खत्म नहीं हुई है।

यही कारण है कि मंजिल को पाने की चाह में वे बार-बार रास्ता बदलते रहे हैं। वे इस बात को खुले दिल से स्वीकारते भी हैं। लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नाम से अपनी पार्टी बनाई। मार्च 2021 में रालोसपा का जदयू में विलय में हो गया। नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को जदयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की। नीतीश कुमार कुर्मी समाज से आते हैं और उपेंद्र कुशवाहा कोयरी समाज से। रालोसपा के जदयू में विलय के बाद ऐसी चर्चा रही कि नीतीश ने यह कदम कुर्मी और कुशवाहा (लव-कुश) जातियों के साथ एक शक्तिशाली राजनीतिक साझेदारी को ध्यान में रखकर किया था।

37 साल का राजनीतिक सफर
वर्ष 1985 में उन्होंने शिक्षण कार्य करते हुए ही राजनीति में कदम रखा। वर्ष 1988 तक वे युवा लोकदल के राज्य महासचिव रहे और 1988 से 1993 तक राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी संभाली। 1994 में समता पार्टी का महासचिव बनने के साथ ही उन्हें बिहार की राजनीति में महत्व मिलने लगा। वे लालू यादव की सामाजिक राजनीति के प्रशंसक थे। लालू की ज्यों-ज्यों कांग्रेस से नजदीकी बढ़ी, उपेंद्र उनसे दूर होते गए।

पार्टी में हुई टूट
रालोसपा जिस तेजी के साथ बिहार और देश के राजनैतिक फलक पर उभरी थी, उसी तेजी से वह नीचे भी उतरी। वर्ष 2018 में उपेंद्र जब एनडीए से अलग हुए तो पार्टी भी टूट गई। जहानाबाद से रालोसपा सांसद रहे अरुण कुमार ने राष्ट्रीय समता पार्टी (सेकुलर) के नाम से अलग पार्टी बना ली। सीतामढ़ी से सांसद रहे रामकुमार शर्मा जदयू के साथ चले गए। पार्टी के तीनों विधायकों ने भी बगावत करके खुद के मूल पार्टी होने का दावा कर दिया।

रालोसपा ने लगाया था पहली गेंद पर छक्का
उपेंद्र कुशवाहा ने वर्ष 2013 में नई पार्टी रालोसपा का गठन किया। भाग्य की बुलंदी यह रही कि एक साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनकर उनकी पार्टी को बिहार में तीन सीटें मिलीं। यह सीटें थी काराकाट, सीतामढ़ी और जहानाबाद। मोदी लहर पर सवार रालोसपा का रिजल्ट शत-प्रतिशत रहा। पार्टी ने तीनों सीटों पर जीत हासिल की। 2019 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने काराकाट और उजियारपुर लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार मिली।

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा ने महागठबंधन से नाता तोड़कर मायावती की बसपा और एआईएमआईएम के साथ नया गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा। विधानसभा चुनाव में रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को उनके गठबंधन द्वारा मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया था पर इनके गठबंधन में शामिल हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में जहां पांच सीट जीत पायी थी वहीं रालोसपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही थी।

कर्पूरी से प्रभावित होकर किया राजनीति का रुख
उपेंद्र कुशवाहा के पिता के कर्पूरी ठाकुर से बड़े अच्छे संबंध थे। जब उपेन्द्र छोटे थे तो कर्पूरी जी उनके घर आया करते थे। उनके यहां कर्पूरी जी आते तो गांव-जवार के और भी लोग जुट जाते। गरीब-गुरबा, शोषितों-वंचितों के हितों को लेकर चर्चा होती। इन्हीं सब बातों से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया।

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.