राम मंदिर निर्माण में लगेगें नेपाल के शालिग्राम के पवित्र पत्थर, जानिए क्यों है इसका धार्मिक महत्व

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अयोध्या: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तेजी से चल रहा है। इस साल के अंत तक यह निर्माण पूरा होने की उम्मीद है। मंदिर में एक तरफ जहां राजस्थान के गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल हो रहा है वहीं दूसरी ओर दो बड़े शालिग्राम पत्थर (पवित्र पत्थर) भी नेपाल से मंगाए गए हैं। ये पत्थर नेपाल से जल्द ही अयोध्या पहुंच जाएगा। बताया जा रहा है कि इनका उपयोग राम जन्मभूमि मंदिर के लिए राम लला की एक मूर्ति को तराशने के लिए किया जा सकता है। औपचारिक पूजा के बाद गोरखनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए रवाना कर दिया गया है।

नेपाल में काली गंडकी जलप्रपात से लाए गए शालिग्राम शिला को बिहार से उत्तर प्रदेश ले जाया गया और मंगलवार देर रात गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर पहुंचा था। सदियों पुराने माने जाने वाले शालिग्राम पत्थरों के साथ लगभग 100 विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के पदाधिकारी और नेपाल से पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी साथ आ रहा है। ये सभी मंगलवार को गोरखनाथ मंदिर में रात्रि विश्राम के बाद बुधवार को अयोध्या के लिए रवाना हुए। जगह जगह हो रहा इन शिलाओं का स्वागत 26 टन और 14 टन वजनी पत्थरों को दो ट्रेलरों पर लादा गया था। सुकरौली और हाटा जगदीशपुर में शालिग्राम शिलाओं का स्वागत करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुशीनगर को गोरखपुर से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर पहुंचे। उन्होंने धार्मिक नारे लगाए और पूजा-अर्चना की।

कुशीनगर जिला प्रशासन ने विभिन्न स्थानों पर शालिग्राम शिलाओं के पूजन की व्यवस्था की। शालिग्राम के पत्थरों का मूर्ति को तराशने में होगा इस्तेमाल शालिग्राम के पत्थर राम लला की मूर्ति को तराशने के लिए एक विकल्प हैं। कर्नाटक और ओडिशा के पत्थर भी इसी उद्देश्य के लिए अयोध्या पहुंचेंगे। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने 28 जनवरी को दो दिवसीय बैठक के बाद कहा था कि पत्थर अयोध्या में राम कथा कुंज तक पहुंचेंगे जहां उन्हें भक्तों द्वारा पूजा के लिए खोला जाएगा।

नेपाल की काली गंडकी से लाई जा रही शिलाएं दरअसल, नेपाल में काली गंडकी नाम का एक झरना है। यह दामोदर कुंड से निकलती है और गणेश्वर धाम गंडकी से लगभग 85 किमी उत्तर में है। ये दोनों पत्थर वहीं से लाए गए हैं। यह स्थान समुद्र तल से 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लोग यहां तक कहते हैं कि यह करोड़ों साल पुराना है।

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