मॉनसून बढ़ाएगा किसानों की टेंशन? जान लीजिए मौसम का पूर्वानुमान

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“का बरखा, जब कृषि सुखाने. समय चुके फिर का पछताने”… रामचरितमानस में तुलसीदास द्वारा उपयोग की गई ये पंक्ति इस बार भी सही साबित हो सकती है. मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट के मुताबिक, इस साल भी किसानों से इंद्रदेव रुठे नजर आ सकते हैं. इसके चलते खरीफ की फसलों में विशेषकर धान की बुआई वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की फसल पर भारी मार पड़ी है. अब किसानों की नजरें मॉनसून की बारिश पर टिकी हैं. मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट ने इस साल मॉनसून कमजोर होने की भविष्यवाणी की है. ऐसे में किसानों के सामने एक बार फिर से सूखे की स्थिति सामने आ सकती है.

कमजोर मॉनसून और सामान्य से कम बारिश होने से धान, सोयाबीन तथा मूंगफली की फसलों को नुकसान हो सकता है. यदि फसल की बुवाई में अधिक की देरी होती है तो फसल का उत्पादन घट सकता है. बता दें कि पिछले साल फसल चक्र पर बुरा प्रभाव पड़ा था.

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साल 2022 में कमजोर मॉनसून होने के चलते धान की फसल को काफी नुकसान हुआ था. समय पर बारिश नहीं होने के चलते किसानों ने धान की बुवाई में देरी की थी. जिन किसानों ने समय से बुवाई कर भी दी थी, उन्हें सिंचाई की संकट के चलते खासा नुकसान उठाना पड़ा था. धान के उत्पादन में भी भारी कमी दर्ज की गई थी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2022 में तकरीबन 62 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था. बारिश की कमी चलते किसानों को दलहन-तिलहन की फसलों की खेती करने का निर्देश दिया गया था. किसानों को रागी के बीजों का वितरण भी किया गया था. इसके अलावा सिंचाई के लिए उपयोग होने ट्यूबवेल के बिजली के बिल की वसूली पर भी रोक लगाई गई थी.

बिहार और झारखंड के किसानों पर भी कमजोर मॉनसून की मार पड़ी थी.दोनों ही राज्यों में सूखे से ग्रस्त किसानों को 3500 रुपये बतौर मुआवजा दिया गया था. बता दें कि बिहार के अधिकतर जिलों में भूजल स्तर का बहुत ही बुरा हाल है. ऐसे में अगर मॉनसून कमजोर रहता है तो किसानों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है.

बता दें कि धान की फसल के लिए अच्छी सिंचाई ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. ऐसे में कम बारिश के चलते खेती बिगड़ सकती है. खेती बिगड़ने पर अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ना लाजिमी है. सिंचाई की अन्य तकनीकों को अपनाकर इस नुकसान को काफी कम किया जा सकता है.

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