नई दिल्ली : वंदे भारत की सवारी का मजा ले रहे देश को अब हाइड्रोजन ट्रेन की भी सौगात मिलने वाली है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को एक बार फिर दिसंबर 2023 तक हाइड्रोजन ट्रेन मिलने की बात दोहराई है। कहा जा रहा है कि ग्रीन इनीशिएटिव्स या हरित पहलुओं के लिहाज से यह कदम काफी अहम होगा। फिलहाल, कई देशों में इस तरह की रेलगाड़ियों का सीमित इस्तेमाल जारी है।
ये रेलगाड़ियां डीजल इंजन के बजाए हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स का इस्तेमाल करती हैं। यहां हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को बदलकर बिजली पैदा करते हैं, जो ट्रेन की मोटर को पावर देने में काम आती है। खास बात है कि हाइड्रोजन ट्रेन कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स या पर्टिकुलेट मैटर जैसे हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करती हैं।
दरअसल, हाइड्रोजन ट्रेन की लागत को सबसे बड़ी मुश्किल माना जा रहा है। रिसर्च और रेटिंग एजेंसी ICRA के अनुसार, भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत करीब 492 रुपये प्रति किलो है। माना जाता है कि डीजल इंजन के मुकाबले फ्यूल सेल आधारित इंजन को चलाने में 27 फीसदी खर्च ज्यादा आएगा। इसके साथ ही स्टोरेज समेत कई अन्य खर्च भी होंगे।
फरवरी में ही रेल मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ के तहत 35 हाइड्रोजन ट्रेन चलाने पर विचार किया जा रहा है। सरकार ने प्रति ट्रेन 80 करोड़ रुपये और इंफ्रास्ट्रक्चर पर 70 करोड़ रुपये प्रति मार्ग के खर्च का अनुमान लगाया था। संभावनाएं हैं कि जींद-सोनीपत के बीच पहले प्रोटोटाइप का ट्रायल 2023-24 में हो सकता है।