नई दिल्ली : हिंदू धर्म में रखे जाने वाले सभी व्रतों में से एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत की श्रेणी में आता है. साल भर आने वाली 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे उत्तम एवं कठोर माना जाता है. जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की शेषशयिया रूप की पूजा की जाती है. इस दिन बिना जल,अन्न और फलाहार के व्रत करते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से सभी 24 एकादशियों हूं जितना फल प्राप्त होता है.
इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई 2023 को रखा जा रहा है. निर्जला एकादशी पर पानी पीना भी वर्जित होता है, लेकिन गर्मी के कारण अक्सर बहुत से लोग प्यास लगने पर पानी पी लेते हैं. जिससे उनका व्रत टूट जाता है. ऐसे में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं, कि किस तरह से निर्जला एकादशी व्रत में पानी पीएं जिससे आपका व्रत खंडित नहीं होगा और आप की प्यास भी बुझ जाएगी.
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. महाभारत काल में भीम को यह व्रत रखने पर 10,000 हाथियों की जितनी बल प्राप्ति हुई थी और वे दुर्योधन पर विजय प्राप्त कर सके. ज्योतिष शास्त्र मानता है, कि यह व्रत बाल, वृद्ध और रोगी व्यक्तियों को नहीं रखना चाहिए. अगर व्रत के दौरान पानी पी लिया जाए तो यह व्रत टूट जाता है, लेकिन यदि प्राण संकट में आने वाली स्थिति हो तो जल ग्रहण किया जा सकता है, लेकिन धर्म शास्त्रों में जल ग्रहण करने की भी एक विधि बताई गई है.
निर्जला एकादशी के व्रत में जल और अन्न ग्रहण करने की मनाही होती है. इस व्रत का सही तरह से पालन करने पर ही पूरा फल प्राप्त होता है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति व्रत के दौरान जल बगैर नहीं रह पाता या उसके प्राण संकट में आने वाली स्थिति हो जाती है. तो ऐसे में उस व्यक्ति को 12 बार “ॐ नमो नारायणाय” का जाप करना चाहिए. इसके बाद एक थाली में जल लेकर घुटने और बाजू को जमीन पर लगाकर पशुवत जल ग्रहण किया जा सकता है. इस तरह से जल ग्रहण करने से निर्जला एकादशी का व्रत भंग नहीं होता.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी के व्रत का पूरा फल तब मिलता है. जब इस व्रत का पारण सही मुहूर्त में किया जाए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति को पारण शुभ मुहूर्त के अंदर द्वादशी तिथि में ही करना चाहिए. इस व्रत को रखने वाले लोग सुबह स्नानादि से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु को प्रणाम करें, और पूजा पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा देकर सम्मान से विदा करें. इसके बाद खुद अपने व्रत का पारण करें.