नई दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में भारत भी शामिल था। अब तक यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का आठ बार सदस्य रह चुका है। आखिरी बार 2021-22 में अस्थायी सदस्य बना था। मगर पूरी योग्यता और व्यापक समर्थन के बावजूद अब भी स्थायी सदस्यता की बाट जोह रहा है। गौरतलब है कि स्थायी सदस्यता के मामले में भारत को दुनिया भर का समर्थन हासिल है, सिवाय चीन के।
ताजा परिप्रेक्ष्य में ब्रिटेन ने सुरक्षा परिषद में विस्तार का समर्थन करते हुए कहा है कि भारत, जापान, ब्राजील समेत अफ्रीकी देशों को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दी जाए। इसमें दो राय नहीं कि पिछले सतहत्तर वर्षों से चली आ रही इस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की मांग अक्सर उठती रही है। दुनिया में कई बदलाव हुए हैं, मगर सुरक्षा परिषद पांच स्थायी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस के अलावा दस अस्थायी सदस्यों के साथ यथावत बना हुआ है। अब परिवर्तन का समय आ चुका है।
सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 की भू-राजनीतिक और द्वितीय विश्वयुद्ध से उपजी स्थितियों को देखते हुए की गई थी, पर सतहत्तर वर्षों में पृष्ठभूमि अब अलग हो चुकी है। देखा जाए तो शीतयुद्ध की समाप्ति के साथ ही इसमें बड़े सुधार की गुंजाइश थी, जो नहीं किया गया। पांच स्थायी सदस्यों में यूरोप का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है, जबकि आबादी के लिहाज से बमुश्किल वह पांच फीसद स्थान घेरता है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई सदस्य इसमें स्थायी नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का पचास प्रतिशत कार्य इन्हीं से संबंधित है। ढांचे में सुधार इसलिए भी होना चाहिए, क्योंकि इसमें अमेरिकी वर्चस्व दिखता है। सदस्यता के मामले में भारत की दावेदारी बहुत मजबूत दिखाई देती है।
जनसंख्या की दृष्टि से चीन को पछाड़ते हुए पहला सबसे बड़ा देश, जबकि अर्थव्यवस्था के मामले में दुनिया में पांचवां, साथ ही प्रगतिशील अर्थव्यवस्था और जीडीपी की दृष्टि से भी प्रमुखता लिए हुए है। इतना ही नहीं, भारत को विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे आर्थिक संगठनों में प्रभावशाली माना जा सकता है। भारत की विदेश नीति तुलनात्मक रूप से प्रखर हुई है और विश्व शांति को बढ़ावा देने वाली है। संयुक्त राष्ट्र की सेना में सबसे ज्यादा सैनिक भेजने वाले देश के नाते भी इसकी दावेदारी प्रबल है।
हालांकि भारत के अलावा कई और देश स्थायी सदस्यता के लिए नपे-तुले अंदाज में दावेदारी रखने में पीछे नहीं हैं। जी-4 समूह के चार सदस्य भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान, जो एक-दूसरे के लिए स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हैं, ये सभी इसके हकदार समझे जाते हैं। एल-69 समूह, जिसमें भारत, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के बयालीस विकासशील देशों के एक समूह की अगुआई कर रहा है। इस समूह ने भी सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग की है। अफ्रीकी समूह में चौवन देश हैं, जो सुधारों की वकालत करते हैं।
इनकी मांग रही है कि अफ्रीका के कम से कम दो राष्ट्रों को वीटो शक्ति के साथ स्थायी सदस्यता दी जाए। इससे यह लगता है कि भारत को स्थायी सदस्यता न मिल पाने में चुनौतियां कहीं अधिक बढ़ी हैं। अगर भारत को इसमें स्थायी सदस्यता मिलती है, तो चीन जैसे देशों के वीटो के दुरुपयोग पर न केवल अंकुश लगेगा, बल्कि असंतुलन को भी पाटा जा सकेगा।
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को लेकर भारत बरसों से प्रयासरत है। अमेरिका और रूस समेत दुनिया के अनेक देश भारत की स्थायी सदस्यता के पक्षधर हैं। पर यह मामला अभी खटाई में बना हुआ है। गौरतलब है कि पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले भारत में राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा ने कहा था कि अगर जो बाइडेन राष्ट्रपति बनते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को नया रूप देने में मदद करेंगे, ताकि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मिल सके। मगर इस दिशा में अभी कुछ ऐसा होता दिखा नहीं है।