चीन की ‘नापाक’ साजिश, डैम बनाकर ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोकेगा ड्रैगन

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नई दिल्ली : भारत का पड़ोसी देश चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की अपनी ‘नापाक’ कोशिश करने वाले चीन को मुंह की खानी पड़ी है। हिंद महासागर में भी वह अनाधिकृ​त रूप से अपनी घुसपैठ बढ़ा रहा है। हालांकि इस पर भी उसे कड़ा जवाब मिल रहा है। इसी बीच वास्‍तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर एक बार फिर भारत और चीन के बीच टकराव बढ़ने की आशंका है।

मीडिया ​रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन, तिब्बत में एलएसी के करीब यारलुंग-त्संगपो नदी की निचली धारा पर एक सुपर बांध बनाने की अपनी योजना को आगे बढ़ा रहा है। इस नदी को भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है और यह सबसे बड़ी नदी है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने निक्केई एशिया में लिखे अपने एक लेख में इस बात की पुष्टि की है। आर्टिकल के मुताबिक ‘चीन दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण गुप्त रूप से नहीं कर सकता।’ इस आर्टिकल पर अगर यकीन करें तो यह बांध 60 गीगावॉट की क्षमता वाला होगा।

यह बांध चीन के मेगा प्रोजेक्‍ट का हिस्‍सा होगा। भारत से सटी सीमा पर उसका यह बांध आकार और क्षमता दोनों में उसके अपने ही एक और डैम ‘थ्री गॉर्जेस’ से भी कई गुना ज्‍यादा बड़ा होगा। थ्री गॉर्जेस इस समय दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है। माना जा रहा है कि ब्रह्मपुत्र के उस बिंदु पर बिजली पैदा करने की योजना बना रहा है, जहां ये यह नदी भारत में दाखिल होती है। नवंबर 2020 में बांध की खबरें फिर से सामने आईं थी। उस समय चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस बारे में जानकारी दी थी।

कैलाश पर्वत के पास एंगसी ग्लेशियर से निकलती और पूर्व में हिमालय से घिरी ब्रह्मपुत्र नदी 3,969 किलोमीटर लंबी है। भारत की सीमा के बाहर इसे चीन में यारलुंग-त्संगपो के नाम से बुलाते हैं। यह नदी यह अलग-अलग क्षेत्रों से होकर बहती है। तिब्बत से निकलती हुई यह भारत से गुजरती है और अंत में बांग्लादेश में खत्‍म होती है। यह दुनिया की नौवीं सबसे बड़ी नदी है।

आर्टिकल में लिखा था, ‘चीन यारलुंग-त्सांगपो नदी पर एक जलविद्युत परियोजना का निर्माण करेगा जो एशिया के प्रमुख जल क्षेत्रों में से एक है और यह नदी भारत और बांग्लादेश से भी गुजरती है।’ पावर कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन ऑफ चाइना या पावरचाइना के अध्यक्ष ने ऐलान किया था, ‘यह परियोजना चीनी जलविद्युत उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक अवसर होगी।’

ऐसी भी आशंका है कि चीन देश के कुछ हिस्सों में पानी की कमी को कम करने के लिए नदी को उत्तर की ओर मोड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो फिर यह भारत के लिए लिए खतरनाक स्थिति साबित हो सकती है। हालांकि भारत ने समय समय पर चीन से इस बात को लेकर कड़ा ऐतराज जताया है।

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