संविधान के पहले ड्राफ्ट में नहीं था भारत, फिर कैसे पीछे हटे थे भीमराव आंबेडकर और हुआ बदलाव

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नई दिल्ली: देश का नाम भारत करने को लेकर कयास तेज हैं और विपक्ष इसे लेकर सरकार पर हमला बोल रहा है। वहीं भाजपा सरकार का कहना है कि यह तो हमारी संस्कृति का हिस्सा है। भारत और INDIA को लेकर छिड़ी यह डिबेट नई नहीं है। यहां तक कि भारत का संविधान बनने के दौरान भी इसे लेकर लंबी बहस हुई थी। इसकी वजह यह थी कि संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन भीमराव आंबेडकर ने जो पहला खाका पेश किया था, उसमें भारत नाम ही नहीं था। उन्होंने संविधान में INDIA नाम ही लिखा था, जिस पर सभा के कई सदस्यों ने आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि देश का मूल नाम ही ‘भारत’ है। ऐसे में उसको जगह न देना गलत है। फिर लंबी बहस हुई और एक साल बाद जब फाइनल ड्राफ्ट आया तो उसमें भारत नाम को जगह दी गई।

इसके बाद ही भारतीय संविधान में लिखा गया, ‘इंडिया दैट इज भारत।’ यही नहीं प्रस्तावना में भी ‘हम भारत के लोग’ का जिक्र किया गया है, जबकि अंग्रेजी में ‘वी द पीपल ऑफ इंडिया’ लिखा गया है। इस तरह संविधान में वर्णन के चलते भारत और इंडिया का अर्थ हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा से हो गया। देश का नाम INDIA माना गया और उसका हिंदी अर्थ भारत के तौर पर लिया गया। यही वजह थी कि अंग्रेजी को बढ़ावा मिलने का विरोध करने वाले राम मनोहर लोहिया, मुलायम सिंह यादव जैसे नेता और आरएसएस जैसे संगठन तंज में भारत और INDIA के बीच अंतर होने की बात कहते थे।

भारत पहले न लिखने पर भी भड़के थे संविधान सभा के सदस्य
संविधान सभा के सदस्य एचवी कामत तो उससे भी सहमत नहीं थे, जिस तरीके से भारत नाम को शामिल किया गया। उनका कहना था कि पहले भारत आना चाहिए और फिर लिखा जाना चाहिए कि जिसे इंग्लिश में INDIA कहते हैं। इसके अलावा उनका सुझाव था कि भारत नहीं तो फिर हिंद ही लिखा जाए और अंग्रेजी में INDIA कह सकते हैं। भारत नाम शामिल करने के पक्ष में संविधान सभा में सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, के. सुब्बाराव, राम सहाय और हर गोविंद पंत शामिल थे। सेठ गोविंद दास ने कहा था कि वेदों में INDIA शब्दा का कहीं इस्तेमाल नहीं है। यह शब्द तब आया, जब ग्रीक भारत आए थे। उन्होंने ही INDIA शब्द का इस्तेमाल शुरू किया और फिर जोर पकड़ता गया।

भारत नाम रखने के समर्थकों का कहना था कि वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथों, महाभारत और पुराणों में भी भारत का ही जिक्र मिलता है। इसके अलावा चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा संस्मरण में भारत ही लिखा था। इसी डिबेट को आगे बढ़ाते हुए के. सुब्बाराव ने कहा था कि सिंधु और इंडस नदी की वजह से INDIA नाम सामने आया। उन्होंने तो यह भी कहा था कि देश का हिन्दुस्तान नाम भी पाकिस्तान के दावे को मजबूत करता है क्योंकि अब सिंधु नदी उसके हिस्से में है। इसलिए हिन्दुस्तान नाम भी नहीं होना चाहिए। नाम भारत होना चाहिए। उन्होंने तो हिंदी भाषा को भी ‘भारती’ कहे जाने की वकालत की थी।

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