नकली GST चालान, ई-वे बिल जारी करना आर्थिक अपराध: दिल्‍ली हाई कोर्ट

0 119

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने जीएसटी चोरी के लिए फर्जी चालान और ई-वे बिल जारी करने की गंभीरता को देखते हुए इसे आर्थिक अपराध की श्रेणी में रखा है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान होता है। न्यायमूर्ति अमित बंसल ने गैर-मौजूद संस्थाओं द्वारा जारी झूठे चालान बनाकर जालसाजी और जीएसटी चोरी के आरोपी चार्टर्ड अकाउंटेंट को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। यह मामला उमंग गर्ग द्वारा दायर एक शिकायत से उपजा है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) ने उन्हें विभिन्न फर्मों के माध्यम से सामान या सामग्री खरीदने के लिए प्रेरित किया था, जो बाद में फर्जी पाया गया।

गर्ग ने आगे दावा किया कि सीए ने उनसे इन सामानों के लिए विभिन्न नामों के तहत अलग-अलग खातों में भुगतान जमा कराया, अंततः उनसे 2,81,99,475 रुपये की धोखाधड़ी की, जिसमें बकाया जीएसटी भी शामिल है। अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने स्थिति की गंभीरता को रेखांकित किया। इसमें कहा गया है कि सीए ने मध्यस्थता कार्यवाही के माध्यम से मामले को निपटाने की पेशकश करके अंतरिम सुरक्षा हासिल करने का प्रयास किया था, जिसका अर्थ है कि उसका इरादा मध्यस्थता के दौरान उस सुरक्षा को बनाए रखना था। हालाँकि, एक बार जब मध्यस्थता की कार्यवाही “निपटान नहीं” के रूप में समाप्त हो गई, तो अदालत ने आवेदन का उसके गुण-दोष के आधार पर मूल्यांकन करना आवश्यक समझा।

अदालत ने यह भी कहा कि जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों से पता चलता है कि सीए संबंधित कंपनियों को चला रहा था और उसने गर्ग से 3.5 करोड़ रुपये की पर्याप्त राशि प्राप्त की थी। इन निष्कर्षों और झूठे चालान के निर्माण के माध्यम से जालसाजी और जीएसटी चोरी सहित आरोपों की गंभीर प्रकृति के आलोक में अदालत ने सीए को अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं पाया। न्यायमूर्ति बंसल ने चार्टर्ड अकाउंटेंट को पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा भी रद्द कर दी।

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.