वाशिंगटन : संयुक्त राष्ट्र विश्व निकाय ने कहा है कि महिलाओं की बराबरी के लिए तय लक्ष्य पाना असंभव हो गया है। 2030 तक विश्व में लैंगिक समानता हासिल करने का लक्ष्य अब पूरी तरह पहुंच के बाहर हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक व व्यापारिक सत्ता केंद्रों में महिलाओं के प्रति भेदभाव के कारण यह लक्ष्य पाना अब असंभव हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने लैंगिक समानता के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के साथ मिलकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि महिलाओं और लड़कियों के अधिकार देने के मामले में दुनिया नाकाम रही है। ‘द जेंडर स्नैपशॉट 2023’ शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट कहती है कि लैंगिक समानता को सक्रिय रूप से विरोध झेलना पड़ रहा है। रिपोर्ट जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव मारिया-फ्रैंचेस्का स्पैटोलिजानो ने कहा कि लैंगिक समानता एक लगातार दूर होता लक्ष्य बनता जा रहा है। युद्धग्रस्त और नाजुक इलाकों में रहने वाली महिलाओं का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले सालों में जो प्रगति हुई थी, वह भी अब खोती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र ने महिला अधिकारों के क्षेत्र में 17 लक्ष्य हासिल करने की बात कही थी।
महिलाओं के बीच अत्यधिक गरीबी दूर करने के लक्ष्य के बारे में रिपोर्ट कहती है कि आज भी दुनिया में हर दस में से एक महिला (करीब 10.3%) 2.15 डॉलर यानी 200 रुपये रोजाना पर जीने को मजबूर हैं। यदि यही चला तो 2030 तक 8% से ज्यादा महिलाएं इसी स्तर पर जी रही होंगी। इनमें से अधिकतर महिलाएं सब-सहारा अफ्रीका में रह रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 तक पूरी दुनिया में 12.9 करोड़ लड़कियां स्कूलों से बाहर हो सकती हैं। प्रगति की यदि यही दर रहती है तो 2030 तक 11 करोड़ लड़कियां ऐसी होंगी जो स्कूल नहीं जा रही होंगी। महिलाओं को सम्मानजनक काम उपलब्ध कराने का लक्ष्य भी पहुंच से बहुत दूर बताया गया है।