नई दिल्ली : चूहों में कोरोना के ओमिक्रॉन वैरियंट से निकला उप वैरिएंट बीए.5 मिला है, जो अधिक विषैला और ताकतवर है। यह मरीज के शरीर में न सिर्फ तेजी से फैलने की क्षमता रखता है बल्कि इससे जोखिम भी बढ़ जाता है। जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित अध्ययन में बताया कि यह स्ट्रेन रोगी पर हावी होने में अधिक समय नहीं लेता है।
अमेरिका में कॉर्नेल विवि के पशु चिकित्सा महाविद्यालय (सीवीएम) के प्रो. एवरी अगस्त ने कहा कि यह उप वैरिएंट एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, जो इसे अधिक विषैला बनाता है। ओमिक्रॉन के उप वैरिएंट अभी भी पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब चूहों को बीए.1 और बीए.2 उप वैरिएंट से संक्रमित किया तो वे कम बीमार पड़े लेकिन जब अगले समूह को बीए.5 से संक्रमित किया तो कुछ ही समय बाद उनका वजन घटने लगा और उनके फेफड़ों में वायरस बढ़ने लगा। उनकी कोशिकाओं में सूजन भी दिखाई देने लगी जो गंभीर स्थिति का संकेत होती है।
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के जरिए सभी देशों से अपील की है कि कोरोना वायरस अभी भी एक गंभीर संकट बना हुआ है। इसकी निगरानी और उप वैरिएंट को समझने के लिए सभी को जीनोमिक निगरानी पर ध्यान देने की जरूरत है। कोरोना के उपचार में इस्तेमाल एंटीवायरल दवा मोलनुपिराविर कोरोना वायरस का ही म्यूटेंट पैदा कर सकती है। मेडिकल जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययन में बताया कि एंटीवायरल दवा को कोरोना वायरस में उत्परिवर्तन के पैटर्न से जोड़ा है।
यूके में फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि मोलनुपिराविर दवा प्रतिकृति के दौरान वायरस की आनुवंशिक जानकारी या जीनोम में उत्परिवर्तन का काम करती है। इनमें से कई उत्परिवर्तन वायरस को नुकसान पहुंचाएंगे या मार देंगे, जिससे शरीर में वायरस लोड कम हो जाएगा। यह महामारी के दौरान उपलब्ध पहली एंटीवायरल दवा है, जिसे कई देशों ने व्यापक रूप से अपनाया है। शोधकर्ताओं ने करीब 1.50 करोड़ जीनोम सीक्वेंसिंग विश्लेषण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इससे पहले हार्वर्ड के प्रोफेसर मार्टिन नोवाक ने भी एक अध्ययन के जरिए इस दवा के इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की जिसे मेडिकल जर्नल पीएलओएस बायोलॉजी में प्रकाशित किया है।
इस अध्ययन में पता चला कि मोलनुपिराविर दवा मामूली रूप से धीमी गति से होने वाले स्थिर विकास के तौर पर सुरक्षित है, लेकिन इसका सही ढंग से उपयोग नहीं किया तो यह दवा वायरस में म्यूटेशन उभारती है। फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के प्रो. थियो सैंडरसन ने कहा,”हमारे सबूत बताते हैं कि कोरोना वायरस में लगातार हो रहे म्यूटेशन के लिए जिम्मेदार यह दवा भी है जिससे जीवित वायरल आबादी में आनुवंशिक विविधता बढ़ रही है। इसलिए हमें ऐसी दवाओं की खोज करनी चाहिए जिनका उद्देश्य संक्रमण की अवधि को कम करना हो।