अगर नवरात्रि पर पहली बार रखने जा रहे हैं देवी दुर्गा का व्रत तो जरूर जान लें सभी जरूरी नियम

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नई दिल्ली : सनातन परंपरा में शक्ति की साधना सभी दुखों को दूर करके मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है. हिंदू मान्यता के अनुसार शक्ति पूजा (shakti puja) के लिए नवरात्रि (Navratri) के 09 दिन अत्यंत ही शुभ माने गये हैं, जो​ कि इस साल 15 से 24 अक्टूबर तक रहेंगे. देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए इन 09 दिनों में उनके भक्त पूरे विधि-विधान से जप-तप और व्रत करते हैं. यदि आप भी इस साल नवरात्रि का व्रत रखने की सोच रहे हैं तो आपको इसका पुण्यफल पाने के लिए इससे जुड़े सभी जरूरी नियम जरूर मालूम होने चाहिए.

नवरात्रि के 09 दिनों तक यदि आप व्रत रखना चाहते हैं तो सबसे पहले इसके लिए तन और मन से पवित्र हो जाएं और प्रतिपदा तिथि शुभ मुहूर्त में इस व्रत का करने का संकल्प लें.

यदि आप पूरे दिन 09 दिन व्रत नहीं रख सकते हैं तो आप अपनी सुविधा के अनुसार नवरात्रि के पहले और आखिरी दिन व्रत रखते हुए देवी की पूजा एवं साधना कर सकते हैं.

शक्ति की साधना और व्रत का संकल्प लेने के बाद नवरात्रि के पहले दिन ही शुभ मुहूर्त में किसी योग्य साधक के निर्देशन में कलश स्थापना करें और पवित्र मिट्टी में ज्वाब बो दें.

नवरात्रि का व्रत रखने वाले साधकों को अपने घर के ईशान कोण, पूर्व या फिर उत्तर दिशा में बैठकर देवी की साधना करना चाहिए. देवी की पूजा करते समय आपका चेहरा हमेशा पूर्व की ओर रहना चाहिए.

नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा हमेशा आसन पर बैठकर करना चाहिए. शक्ति की साधना के लिए लाल रंग का ऊनी आसन शुभ माना गया है. कभी भूलकर भी जमीन पर बैठकर देवी दुर्गा की पूजा न करें.

नवरात्रि के व्रत रखने वाले साधक को व्रत के आखिरी दिन देवी दुर्गा की स्वरूप मानी जाने वाली कन्या की पूजा करनी चाहिए. शक्ति की साधना में 2 साल से लेकर 09 साल तक की कन्या की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है.

नवरात्रि के व्रत करने वाले को तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए. इसी प्रकार देवी साधना को व्रत के दौरान पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

नवरात्रि में देवी पूजा करने वाले साधकों को व्रत के दौरान भूलकर भी किसी की निंदा, चुगली अथवा किसी का अपमान नहीं करना चाहिए.

यदि आप नवरात्रि के 09 दिनों तक देवी का व्रत रखने जा रहे हैं तो इन 09 दिनों में अपने बाल और नाखून न काटें. नवरात्रि का व्रत रखने वाले साधक को अपने सामर्थ्य के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए और व्रत में अन्न की बजाय फलाहार का सेवन करना चाहिए.

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