वैसे तो किसी भी अतिथि या किसी बुजुर्ग को देखते ही नमस्कार करना या हाथ जोड़ना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन नमस्कार करने का वैज्ञानिक रहस्य क्या है, ये काफी कम लोग ही जानते होंगे। अब यूँ तो आज के समय में नमस्कार करने का चलन काफी कम हो गया है, क्यूकि आज के डिजिटल जमाने में ज्यादातर हेलो बोलने का ही रिवाज है। मगर फिर भी नमस्कार काफी सदियों से हमारी जीवन शैली से जुड़ा हुआ है, तो ऐसे में इसकी महत्वता कभी कम नहीं हो सकती। दरअसल जैसे जैसे हम पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाते जा रहे है, वैसे वैसे हम अपने देश की संस्कृति के मायनों को भूलते जा रहे है। यही वजह है कि वर्तमान समय में हाथ जोड़ कर नमस्कार करने को, हाथ मिला कर हेलो बोलने से कम ही आँका जाता है।
नमस्कार करने का वैज्ञानिक रहस्य
नमस्कार करने के पीछे का वैज्ञानिक रहस्य :
हालांकि नमस्कार करना किसी भी लिहाज से रूढ़िवादी सोच नहीं है, क्यूकि ये तो व्यक्ति की अपनी सभ्यता, संस्कृति और सोच पर निर्भर करता है। मगर इसके पीछे की वैज्ञानिक वजह को नजरअंदाज न करते हुए हर किसी को नमस्कार ही करना चाहिए। गौरतलब है कि जब हम किसी को नमस्कार करते है, तो हमारी पीठ खुद बखुद सीधी हो जाती है और हाथों के पंजे एक दूसरे से मिल जाते है। जिसे एक प्रकार से योगा की स्थिति ही समझा जाता है। बता दे कि नमस्कार करते समय हाथ में किसी भी तरह का सामान नहीं होना चाहिए, बल्कि एकदम सटीक रह कर सही ढंग से नमस्कार करनी चाहिए। इसके साथ ही नमस्कार करते समय मन में कोई बुरा भाव नहीं होना चाहिए, फिर भले ही आप सामने वाले व्यक्ति से नाराज हो, लेकिन नमस्कार करते समय पूरे मन से उस व्यक्ति का स्वागत करना चाहिए।
नमस्कार करने से सकारात्मक शक्ति का होता है आदान प्रदान :
यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि जब आप भगवान् को नमस्कार करे, तब सर को हल्का सा झुकाते हुए ऑंखें बंद कर ले और फिर हाथों के पंजों को छाती के पास ले जाते हुए प्रार्थना करे। इस दौरान अपने हाथों के अंगूठों को माथे से लगा कर प्रार्थना करे, इससे भगवान् से प्राप्त हुई शक्ति और ऊर्जा आपके शरीर तथा मस्तिष्क में पहुँच जाती है। इसके इलावा जब आप किसी व्यक्ति को नमस्कार करे तो आपको उनकी आँखों में देखते हुए अपने सर को थोड़ा सा झुकाना है और चेहरे पर प्रेम का भाव रखना है। इससे सकारात्मक शक्ति का आदान प्रदान होता है।
भगवान् को नमस्कार करने से पहले इस बात का रखे ध्यान :
नमस्कार करने का वैज्ञानिक रहस्य
अब यूँ तो पहले के जमाने में चप्पल निकाल कर नमस्कार करने का रिवाज था, लेकिन समय के साथ साथ सब कुछ बदल चुका है। मगर फिर भी भगवान् को नमस्कार करते समय आपको चप्पल नहीं पहननी चाहिए, क्यूकि इससे सही शक्ति और चेतना आप तक नहीं पहुँच पाती। वही हिन्दू परम्पराओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि नमस्कार शब्द की उत्पति संस्कृत के नमस शब्द से हुई है और इसका अर्थ एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना होता है। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान समय में नमस्कार करने का तरीका काफी बदल चुका, लेकिन आज के समय में कई विदेशी भी नमस्कार का प्रयोग अपनी दिनचर्या में करने लगे है। बहरहाल अब तो आपको नमस्कार करने का वैज्ञानिक रहस्य पता चल ही गया होगा, तो आज से हेलो को भूल कर नमस्कार करना शुरू कर दीजिये।