अमेरिका से यूरोप तक दिखेगा भारत का नाम, चीन का होगा काम-तमाम

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नई दिल्ली: कुछ सालों पहले तक चीन का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. अमेरिका हो या यूरोप, हर जगह मेड इन चाइना के चर्चे थे. कोविड और अमेरिका से तनातनी के बाद चीन की इकोनॉमी और नाम दोनों के खत्म होने की शुरुआत हो गई. दूसरी ओर भारत का नाम दुनिया के हर देश में लिया जाने लगा. अब जो रिपोर्ट सामने आई है वो भारत के लिए काफी अच्छी है और चीन के लिए होश उड़ाने वाली है.

बीते चार पांच सालों में अमेरिका का इंपोर्ट चीन से कम हुआ है और भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों का काफी बढ़ चुका है. अगर बात अमेरिका का भारत से इंपोर्ट की बात करें तो करीब 45 फीसदी पर आ गया है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में भारत का नाम अमेरिका से यूरोप तक सुनाई देने वाला है. वहीं चीन का काम पूरी तरह से तमाम होने को है.

ग्लोबली चीन के नाम को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. उसकी जगह पर भारत को लाने की कोशिश हो रही है. मैन्युफैक्चरिंग से लेकर सप्लाई चेन तक में भारत को प्रमोट करने की कोशिश है. आंकड़ों से समझने की कोशिश करें तो बॉस्टन कंसलटिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार चीन से अमेरिकी इंपोर्ट में 2018 से 2022 तक 10 फीसदी की गिरावट आई. जबकि भारत से इंपोर्ट में 44 फीसदी, मैक्सिको से 18 फीसदी और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ के 10 देशों से 65 फीसदी इजाफा देखने को मिला है.

इसे थोड़ा उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं. चीन से अमेरिकी मैकेनिकल मशीनरी का इंपोर्ट 2018 से 2022 तक 28 फीसदी कम हो गया, लेकिन मेक्सिको से 21 फीसदी, आसियान से 61 फीसदी और भारत से 70 फीसदी बढ़ गया. भारत पिछले पांच सालों में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग विनर्स के तौर पर उभरा है, अमेरिका को इसके निर्यात में 23 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है, जो 2018 से 2022 तक 44 फीसदी की वृद्धि है, जबकि चीन को इस दौरान अमेरिका को निर्यात में 10 फीसदी का नुकसान हुआ है.

भारतीय प्रोडक्ट्स को अमेरिका में काफी पसंद किया जा रहा है. अमेरिका का सबसे बड़ा रिटेलर वॉलमार्ट भारत से अपनी सोर्सिंग बढ़ा रहा है, जिसका मतलब है कि अमेरिका में उसके स्टोर मेड-इन-इंडिया टैग के साथ अधिक प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं. वॉलमार्ट का टारगेट उन कैटेगिरीज में सोर्सिंग करना है जहां भारत के पास विशेषज्ञता है, जिसमें भोजन, कंज्यूमेबल्स, हेल्थ एंड वेलनेस, अपेरल्स, शूज, होम टेक्स्टाइल और खिलौने शामिल हैं.

वॉलमार्ट के कार्यकारी उपाध्यक्ष एंड्रिया अलब्राइट ने ईटी को बताया कि यह 2027 तक हर साल भारत से 10 अरब डॉलर का माल मंगाने के अपने टारगेट तक पहुंचने वाले हैं. कंपनी के अनुसार, भारत पहले से ही लगभग 3 अरब डॉलर के वार्षिक निर्यात के साथ दुनिया के सबसे बड़े रिटेल सेलर के लिए टॉप सोर्सिंग मार्केट्स में से एक है. भारत में बने अपेरल्स, होमवेयर, ज्वेलरी, हार्डलाइन और दूसरे पॉपुलर प्रोडक्ट्स अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, सेंट्रल अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम सहित 14 बाजारों में ग्राहकों तक वॉलमार्ट के बेंगलुरु ऑफिस से पहुंचाए जा रहे हैं. ये ऑफिस 2002 में खोला गया था.

एक्सपोर्ट प्लेटफॉर्म के रूप में भारत को डायरेक्ट मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट में काफी स्ट्रांग एडवांटेज मिला है. बीसीजी की कैलकुलेशन के अनुसार अमेरिका में इंपोर्टिड इंडियन मेड प्रोडक्ट्स की एवरेज लैंडिड कॉस्ट, जिसमें प्रोडक्टीविटी, लॉजिस्टिक, टैरिफ और एनर्जी और फैक्ट्री सैलरी शामिल है, अमेरिका में बने सामान की तुलना में 15 फीसदी कम है. इसके विपरीत, चीन से अमेरिका में उतरने की एवरेज कॉस्ट अमेरिकी कॉस्ट से केवल 4 फीसदी कम है और ट्रेड वॉर से संबंधित अमेरिकी टैरिफ के लगने के बाद प्रोडक्ट्स की कीमत 21 फीसदी ज्यादा है.

दुनिया के अधिकांश देशों में इंफ्लेटिड सैलरी ने प्रोडक्टीविटी बेनिफिट को पीछे छोड़ दिया है. इस मामले में भारत को फायदा मिल रहा है. उदाहरण के लिए, प्रोडक्टीविटी में लेबर कॉस्ट अमेरिका में 2018 से 2022 तक 21 फीसदी और चीन में 24 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है. इसी तरह, मेक्सिको में यह इजाफा 22 फीसदी देखने को मिला है. भारत में लेबर कॉस्ट में 18 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है. उसके बाद भी ये दोनों देश मैन्युफैक्चरिंग के मामले में दुनिया के सबसे अधिक कॉस्ट कंप्टीटिव सोर्स में से एक बना हुआ है. मेक्सिको अमेरिका के लिए सबसे अधिक कंप्टीटिव नियर ऑप्शन है.

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