सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को समीक्षा करने के दिए निर्देश- ड्राइविंग लाइसेंस के मुद्दे पर क्या कानून में बदलाव की जरूरत?

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र को समीक्षा करने का निर्देश दिया है कि क्या ड्राइविंग लाइसेंस देने के नियमों के मुद्दे पर कानून में बदलाव जरूरी है? शीर्ष अदालत ने 17 जनवरी, 2024 तक का केंद्र को समय दिया है। इस पर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ चर्चा कर रही है। पीठ ने कहा कि संशोधन की कवायद के लिए कई हितधारकों के साथ परामर्श की आवश्यकता होगी जिसमें समय लगेगा। बता दें कि पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा भी शामिल है।

पीठ ने दिया तर्क
पीठ ने तर्क दिया कि ‘हम संघ को निर्देश देते हैं कि वह इस अभ्यास को पूरी तत्परता से आगे बढ़ाए। चूंकि राज्य सरकार के साथ परामर्श की परिकल्पना की गई है, हम सभी राज्य सरकारों को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा का अनुपालन करने का निर्देश देते हैं।’

अगले साल जनवरी में होगी सुनवाई
इस मामले पर कोर्ट की कार्यवाही 17 जनवरी, 2024 के लिए सूचीबद्ध कर दी गई है। पीठ ने कहा कि ‘हम उम्मीद करते हैं कि इस तारीख तक परामर्श पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और संघ द्वारा प्रस्तावित आगे के कदमों का एक स्पष्ट रोड मैप इस अदालत के समक्ष रखा जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछे सवाल
शीर्ष अदालत ने पहले केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से एक विशेष वजन के परिवहन वाहन को चलाने का हकदार है या नहीं, इस कानूनी सवाल पर कानून में बदलाव की आवश्यकता है। यह देखते हुए कि ये लाखों लोगों की आजीविका को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दे हैं, पीठ ने कहा था कि सरकार को इस मामले पर ‘नये सिरे से विचार’ करने की जरूरत है, साथ ही यह भी कहा कि इसे नीतिगत स्तर पर उठाए जाने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने पहले इस कानूनी सवाल से निपटने के लिए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी। संविधान पीठ ने कहा था कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की स्थिति जानना आवश्यक होगा क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले को केंद्र ने स्वीकार कर लिया था और नियमों में संशोधन किया गया था।

यह एक वैधानिक मुद्दा
मुकुंद देवांगन मामले में, शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि परिवहन वाहन, जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से अधिक नहीं है, को एलएमवी की परिभाषा से बाहर नहीं रखा गया है। पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि ‘देश भर में लाखों ड्राइवर हो सकते हैं जो देवांगन फैसले के आधार पर काम कर रहे हैं। यह कोई संवैधानिक मुद्दा नहीं है। यह पूरी तरह से एक वैधानिक मुद्दा है।’

पीठ ने कहा कि सड़क सुरक्षा को कानून के सामाजिक उद्देश्य के साथ संतुलित करना होगा और आपको यह देखना होगा कि क्या इससे गंभीर कठिनाइयां पैदा होती हैं। हम सामाजिक नीति के मुद्दों को संविधान पीठ में तय नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार सरकार अदालत को अपना रुख बता दे, उसके बाद संविधान पीठ में सुनवाई की जाएगी।

76 याचिकाओं पर की सुनवाई
18 जुलाई को संविधान पीठ ने कानूनी सवाल से निपटने के लिए 76 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। इसमें विभिन्न श्रेणियों के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के नियमों के संबंध में मोटर वाहन अधिनियम में कथित विसंगतियों पर याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे की दलीलें सुनी गईं। मुख्य याचिका मेसर्स बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर की गई थी।

बता दें कि मोटर वाहन अधिनियम विभिन्न श्रेणियों के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के लिए अलग-अलग व्यवस्था प्रदान करता है। इस मामले को 8 मार्च, 2022 को सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने बड़ी पीठ के पास भेज दिया था। इसमें कहा गया था कि मुकुंद देवांगन फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा कानून के कुछ प्रावधानों पर ध्यान नहीं दिया गया और’ संबंधित विवाद पर फिर से विचार करने की जरूरत है।’

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