प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि अविवाहित बेटियों को उनकी धार्मिक पहचान या उम्र की परवाह किए बिन अपने माता-पिता से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। नईमुल्लाह शेख और एक अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक अविवाहित बेटी, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, उसे गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो।
कोर्ट ने कहा कि जब सवाल लोगों के अधिकार से संबंधित हो तो अदालतों को मामले में लागू होने वाले अन्य कानूनों की भी तलाश करनी होगी। हालांकि, जहाँ मुद्दा केवल भरण-पोषण से संबंधित नहीं है, वहां घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-20 के तहत पीड़ित को स्वतंत्र अधिकार उपलब्ध हैं। वर्तमान याचिका तीन बेटियों के माता-पिता द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा (डीवी) अधिनियम, 2005 के तहत दायर की गई थी, जिसमें उन्हें गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
तीन बहनों ने अपने पिता और सौतेली मां पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए डीवी अधिनियम के तहत भरण-पोषण का दावा करने का मामला दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण का आदेश दिया, जिसे अपीलकर्ताओं ने यह तर्क देते हुए चुनौती दी कि बेटियां वयस्क थीं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र थीं। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी। 10 जनवरी के फैसले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि बेटियां बालिग होने के कारण भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि डीवी अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण प्राप्त करने का वास्तविक अधिकार अन्य कानूनों से भी मिल सकता है, लेकिन इसे पाने के लिए त्वरित और छोटी प्रक्रियाएं डीवी अधिनियम-2005 में दी गई हैं।