साल 2024 में होली कब मनाई जाएगी ? होलिका दहन का मुहूर्त, विधि, कथा और भद्रा काल समय

0 106

नई दिल्ली : हिंदू धर्म में होली को रंगों का त्योहार कहा गया है, वहीं होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है. विविध संस्कृतियों और परंपराओं की भूमि भारत में पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती है.

पौराणिक मान्यता है कि होली की शुरुआत श्रीकृष्ण ने की थी, ब्रज में इस उत्सव की खास रोनक रहती है. फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है.

नए साल में रंगों की होली 25 मार्च 2024 को खेली जाएगी है. वहीं इससे एक दिन पहले होलिका दहन 24 मार्च 2024 को है. होली के पहले दिन, सूर्यास्त के पश्चात, होलिका की पूजा कर उसे जलाया जाता है. होलिका पूजा का मुहूर्त काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है 2024

फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च 2024 को सुबह 09.54 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 25 मार्च 2024 को दोपहर 12.29 मिनट पर समाप्त होगी.

होलिक दहन समय – रात 11.13 – देर रात 12.07 (24 मार्च 2024)
अवधि 1 घंटा 14 मिनट

होलिका दहन पर भद्रा काल ?

होलिका दहन के समय भद्रा काल जरुर देखा जाता है, शास्त्रों में होलिका दहन को लेकर कहा गया है कि ये पर्व भद्रा रहित पूर्णिमा की रात को मनाना उत्तम रहता है.फाल्गुन पूर्णिमा पर शाम के समय गोधूलि बेला में अगर भद्रा का प्रभाव हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए, नहीं तो साधक सहित उसका परिवार संकट में आ जाता है. साल 2024 में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं है

भद्रा पूँछ – शाम 06.33 – रात 07.53
भद्रा मुख – रात 07.53 – रात 10.06

होली का महत्व

होली ऐसा पर्व होता है जब लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं. धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण को होली का पर्व सर्वाधिक प्रिय था. यही कारण है कि ब्रज में होली को महोत्सव के रूप में 40 दिनों तक मनाया जाता है. होली के रंग जीवन में उत्साह और उमंग लेकर आते हैं.

भारत के अलग-अलग शहरों में होली कई तरह से मनाई जाती है, जैसे फूलों की होली, लड्‌डू की होली, लठ्‌ठमार होली को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं, इस दौरान पारंपरिक रीति रिवाज निभाए जाते हैं. वहीं धार्मिक महत्व की बात करें तो इस दिन होलिका दहन में सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती है और सकारात्मकता की शुरुआत होती है.

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यपु के आदेशों को मानने से इनकार कर दिया और भगवान विष्णु से प्रार्थना करता रहा. हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली. होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, क्योंकि होलिका को वरदान था कि अग्नि कभी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी.

विष्णु जी की कृपा से प्रहलाद पर अग्नि की आंच तक नहीं आई लेकिन होलिका जलकर राख हो गई. यही वजह है कि इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर हर साल फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है.

होलिका दहन के दिन होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुख बैठें. सबसे पहले श्रीगणेश की पूजा करें. रोली, अक्षत, बताशे, साबुत हल्दी, गुलाल, नारियल आदि से होलिका की पूजा करें. अब तीन बार लकड़ियों पर कच्चा सूत लपेट दें. अब ‘असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:। अतस्त्वां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए होली की सात बार परिक्रमा करें, इस दौरान होलिका के चारों ओर जल चढ़ाते जाएं.

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.