ताइपे : ताइवान की श्रम मंत्री सू मिंग चूं के नस्लभेदी बयान पर ताइवान ने आधिकारिक तौर पर भारत से माफी मांगी है। मंत्री ने सोमवार को भारत के साथ हुए श्रम करार पर चर्चा करते हुए कहा था कि ताइवान, भारत के पूर्वोत्तर के ईसाई कामगारों को प्राथमिकता देगा, क्योंकि वे रूप-रंग और खान-पान में ताइवानी लोगों से समानता रखते हैं। भारत ने मंत्री की इस टिप्पणी को नस्लभेदी बताते हुए विरोध जताया था। इसके बाद मंगलवार को ताइवान के विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में एक माफीनामा जारी किया है।
ताइवान की सेंट्रल न्यूज एजेंसी के मुताबिक, माफीनामे में कहा गया है कि मंत्री की टिप्पणी खेदजनक है। ताइवान किसी भी प्रवासी कामगार या पेशेवर के साथ उसके रूप-रंग, जाति-धर्म, भाषा और खान-पान के आदतों के आधार पर भेदभाव का पक्षधर नहीं है। इसके साथ ही विदेश मंत्रालय ने भारत सरकार को भरोसा दिया कि ताइवान में सभी भारतीयों के साथ उचित व्यवहार किया जाएगा। यह विवाद तब सामने आया है, जब पूर्वोत्तर के भारतीय श्रमिकों का पहला समूह अगले 6 माह में ताइवान में प्रवेश करेगा।
श्रम मंत्री सू मिंग चूं से जब पूछा गया कि भारत के साथ श्रमिकों को लेकर हुए करार को लेकर उनकी क्या राय है और इसे किस तरह से लागू किया जाएगा? भारत-ताइवान के बीच सांस्कृतिक फासले का इस पर क्या असर होगा? इसके जवाब में चूं ने कहा, पूर्वोत्तर भारत के लोगों का रंग, खाने के तौर तरीके हमसे मिलते जुलते हैं, साथ ही वे हमारी तरह ही ईसाई धर्म में ज्यादा विश्वास रखते हैं। वे काम में निपुण भी हैं। अतः पहले पूर्वोत्तर के श्रमिकों को भर्ती किया जाएगा।
मंगलवार को ताइवानी श्रम मंत्री चूं एक संसदीय सुनवाई में हाजिर हुईं और वहां सोमवार को दिए अपने बयान पर खेद जताते हुए माफी मांगी है। इसके साथ ही कहा कि ताइवान की श्रम नीति के तहत इस तरह के किसी भेदभाव या खास पंसद को महत्व देने की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी तरह का भेदभाव करना नहीं था, बल्कि ताइवान के लोगों को भारत की विविधता के बारे में बताना था, लेकिन वे मानती हैं कि अच्छे मकसद के लिए उन्होंने गलत तरीके का इस्तेमाल किया।
भारत-ताइवान ने 17 फरवरी को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत लाखों भारतीय कामगार ताइवान जाएंगे, क्योंकि ताइवान इस वक्त उत्पादन, निर्माण और कृषि के क्षेत्र में कामगारों की तंगी से जूझ रहा है। करार के तहत भारतीय श्रमिकों की संख्या, उनका प्रशिक्षण और चयन ताइवान ही करेगा।
मामले की जानकारी रखने वाले विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि यह पहली बार है, जब किसी देश के मंत्री ने जनशक्ति की भर्ती के लिए कुछ भारतीय राज्यों को अपनी प्राथमिकता बताया है। मंत्री की ये टिप्पणियां गैरजरूरी और जाहिर तौर पर नस्लवाद की संकेतक थीं। चयन का यह पैमाना बेहद तंग और अनुचित है।