जैसी चाहिए संतान, दंपति की वैसी होगी ट्रेनिंग, गर्भस्थ शिशुओं को संस्कार देने की तैयारी में सरकार

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इंदौर. महाभारत की कथा के अनुसार, जिस तरह मां के गर्भ में रहते हुए अभिमन्यु ने अपने पिता अर्जुन से चक्रव्यूह (Trap) तोड़ने की कहानी सुनकर युद्ध लड़ना सीख लिया था, ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश (MP) में अब शिशुओं को गर्भ में ही संस्कार देने के लिए सरकार द्वारा सुप्रजा योजना शुरू की जा रही है. इंदौर के एक आयुर्वेद कॉलेज ने इस पर काम भी शुरू कर दिया है.

सुप्रजा योजना के अंतर्गत गर्भस्थ भ्रूण अथवा शिशुओं को संस्कारित करने की जिम्मेदारी सरकार ने सभी शासकीय आयुर्वेद कॉलेजों को दी है. मध्य प्रदेश के इंदौर में इस योजना पर शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज ने काम भी शुरू कर दिया गया है. इसके चलते जनवरी माह की शुरुआत से मार्च माह तक डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ द्वारा लगभग 200 परिवारों से संपर्क किया जा चुका है.

कॉलेज से जुड़े डॉ. अखिलेश भार्गव ने बतया कि सुप्रजा योजना के अंतर्गत भारतीय बच्चों को गर्भ में संस्कारित किया जाएगा. गर्भस्थ शिशुओं को संस्कार देने की तैयारियां 3 माह पहले से शुरू हो जाती हैं. इसके लिए अलग-अलग प्रक्रिया होती है और दंपति को खास ध्यान रखना होता है.

डॉक्टर ने बताया कि सबसे पहले जो दंपति संतान चाहते हैं, 3 माह पहले से उनको स्थानीय आयुर्वेद कॉलेज अथवा अस्पताल में बुलाकर पंचकर्म विधि विधान द्वारा उनका शुद्धिकरण किया जाता है. इसके बाद आयुर्वेदिक औषधियां देकर दंपति के शुक्राणु और अंडाणुओं को ताकतवर बनाया जाता है. जब अंडाणु-शुक्राणु सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ और श्रेष्ठ होंगे तो नि:सन्देह संतान भी स्वस्थ होगी.

डॉ. भार्गव ने आगे कहा कि सुप्रजा योजना जनवरी 2024 से शुरू की गई है. इस योजना में आयुर्वेद कॉलेज स्टाफ द्वारा घर-घर जाकर संतान चाहने वाले दंपतियों और उनके परिजनों को इस योजना की जानकारी देना, उन्हें इसके लिए प्रेरित करना, यह सब सुप्रजा योजना के प्रथम चरण में शामिल है.

डॉक्टर ने कहा कि योजना में माता-पिता से काउंसलिंग कर यह पता लगाया जाता है कि वे कैसा बच्चा चाहते हैं. उस हिसाब से दंपति को आध्यात्मिक ऑडियो-वीडियो देखने और सुनने के लिए दिए जाते हैं. योग, ध्यान जैसी विधियां उन्हें सिखाई जाती हैं. उनके भोजन का चार्ट तैयार किया जाता है. कोई दंपति ऐसी संतान चाहते हैं कि वो क्रिकेटर बने तो मां को उस हिसाब से ऑडियो-वीडियो प्रोग्राम देखने-सुनने के लिए दिए जाते हैं. गर्भावस्था से लेकर शिशु के जन्म तक, बल्कि जन्म लेने के 9 माह तक आयुर्वेद कॉलेज मां और शिशुओं के स्वास्थ्य का संपूर्ण रूप से ध्यान रखता है.

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