खत्म हुआ भक्तों का इंतजार… सज गए चारों धाम, देश-दुनिया को रिझाएगी सजावट

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देहरादून : चारधाम यात्रा की ख्वाहिश रखने वालों का इंतजार अब खत्म हो चुका है। ऐसे में देश-दुनिया के श्रद्धालुओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं है। भक्तों के बीच इन पवित्र धामों के दर्शन की उत्सुकता बनी हुई है। अब जगविख्यात श्रीकेदारनाथ धाम और श्रीबद्रीनाथ धाम श्रद्धालुओं की भक्ति से सराबोर होने वाला है। चारधाम के लिए अब तक 2276969 यात्री ऑनलाइन पंजीकरण करा चुके हैं।

10 मई से श्रीकेदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट अक्षय तृतीया की शुभ घड़ी में श्रद्धालुओं के लिए खुल जाएंगे। वहीं, 12 मई से श्री बद्रीनाथ का दरबार भी बद्री-विशाल के जयकारों से गूंजने वाला है। ये पवित्र स्थल सज-धजकर तैयार हो चुके हैं। वहीं मंदिर समिति इन्हें संवारने में लगी है।

देखा जाए तो इन धामों की यात्रा शुरू होने से पहले इनकी बुकिंग का आंकड़ा नए रिकॉर्ड बना रहा है। मई महीने के पहले सप्ताह तक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 22 लाख के पार चला गया है। गुरुवार शाम तक कुल 2276969 यात्री ऑनलाइन पंजीकरण कराए हैं। इसी वजह से मई में बुकिंग फुल हो चुकी है। इस बार केदारनाथ यात्रा के लिए सात लाख 83 हजार 107 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। जबकि बद्रीनाथ के लिए छह लाख 83 हजार 424 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। वहीं, गंगोत्री के लिए चार लाख छह हजार 263 और यमुनोत्री के लिए तीन लाख 56 हजार 134 तो हेमकुंड साहिब के लिए चार लाख आठ हजार 41 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है।

वहीं बगैर पंजीकरण के यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए आठ मई से हरिद्वार और ऋषिकेश में ऑफलाइन पंजीकरण की सुविधा शुरू हो गई है। पर्यटन विभाग की ओर से ऑफलाइन पंजीकरण के लिए जो व्यवस्था लागू की गई है, उसके अनुसार ऋषिकेश सेंटर से प्रत्येक दिन प्रत्येक धाम के लिए 1000 कुल 4000 पंजीकरण किए जाने हैं। जबकि हरिद्वार सेंटर से प्रति धाम 500 कुल 2000 पंजीकरण किए जाने हैं। कुल 18 पंजीकरण काउंटर खोले गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन से भी तीर्थयात्रियों की संख्या में इजाफा होगा।

चारधाम के प्रति भक्तों की श्रद्धा अपरंपार है। इसका प्रमाण हर वर्ष दर्शन के लिए बढ़ते पंजीकरण की संख्या है। इस पावन यात्रा का श्रद्धालु वर्ष भर इंतजार करते हैं और पंजीकृत भक्तों में खुद को शामिल कर अपने आप को अति सौभाग्यशाली समझते हैं। माना जाता है कि जो भी भक्त चारधाम की यात्रा करते हैं, उन पर भगवान की परम कृपा बरसती है।

बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की है। उन्होंने कहा है कि श्रद्धालु यात्रा पर आएं तो भक्तिभाव से दर्शन करें। मंदिरों में रील बनाने से बचें। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम में दर्शन के लिए इस बार प्रक्रिया को सरल बनाया जा रहा है। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यात्रा को लेकर लगातार फीडबैक ले रहे हैं। उन्होंने यात्रियों से व्यवस्थाएं बनाने में सहयोग करने की अपील की है।

श्रीकेदारनाथ, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवान शिव का एक पवित्र धाम है। हर वर्ष यहां लाखों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। केदारनाथ की गणना भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों और पंच केदार में भी की जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, केदारनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है।

श्रीबद्रीनाथ, चारधामों में से एक प्रमुख धाम माना जाता है जो हिमालय की पर्वत श्रेणी में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। यह मुख्य रूप से भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां पर नर और नारायण की उपासना की जाती है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है- गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप। बद्रीनाथ मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां हैं। इनमें सबसे प्रमुख मूर्ति भगवान विष्णु की है।

बतादें कि हर साल केदारनाथ धाम के कपाट भाई दूज के दिन छह महीने के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद अक्षय तृतीया पर खुलते हैं। इन 06 महीनों में बाबा की पूजा ओंकारेश्वर मंदिर में होती है। कपाट बंद होने की तिथि की घोषणा विजयदशमी के दिन होती है और कपाट खुलने की घोषणा महाशिवरात्रि के दिन की जाती है। वहीं बद्रीनाथ धाम के कपाट आमतौर पर केदारनाथ धाम के दो दिनों बाद खुलते हैं।

बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली और रुद्रप्रयाग जिले में हैं। हर साल अक्टूबर से नवंबर के महीनों में यहां पर बर्फबारी शुरू हो जाती है। इसके कारण आवागमन के रास्ते बाधित हो जाते हैं। इस कारण से हर साल इन धामों के कपाट को बंद कर दिया जाता है। इस बीच भगवान शिव की मूर्ति को उखीमठ (ओंकारेश्वर मंदिर) में स्थापित कर दिया जाता है और वहां उनकी पूजा होती है। कपाट खुलने के बाद इन्हें पुनर्स्थापित कर दिया जाता है। वहीं बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद उनकी पूजा जोशीमठ के नरसिम्हा मंदिर में स्थित बद्रीविशाल ‘उत्सव मूति’ के तौर पर चलती है।

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