रूस-यूक्रेन के बीच जंग रुकवाकर पीएम मोदी ले सकते हैं शांति का नोबेल?

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नई दिल्ली : भारत बुद्ध की विरासत वाली धरती है, जो युद्ध नहीं, शांति पर विश्वास करती है। इसलिए, भारत इस रीजन में भी स्थाई शांति का एक बड़ा पैरोकार है। भारत का मत एकदम साफ है, ये युद्ध का युग नहीं है। पोलैंड की राजधानी वॉरसा की धरती से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को यह संदेश दिया तो यह कहा जाने लगा कि क्या मोदी रूस और यूक्रेन के बीच जंग रुकवा सकते हैं? क्या मोदी शांति दूत हैं? क्यों विदेश जाकर वो बुद्ध की बात कर रहे हैं। मोदी पोलैंड से यूक्रेन भी जाएंगे। भारतीय समुदाय के लोगों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, दशकों तक भारत की नीति सभी देशों से दूरी बनाकर रखने की रही थी। जबकि आज के भारत की नीति सभी देशों के करीब रहने की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन के दौरे पर रहेंगे। 30 साल में ये पहली बार है, जब कोई भारतीय पीएम यूक्रेन दौरे पर होगा। इस दौरे से ये भी कहा जा रहा है कि क्या युद्ध रुकवाने पर पीएम मोदी को क्या इस बार शांति का नोबेल मिल सकता है।

यूक्रेन में सूर्यमुखी की पैदावार काफी ज्यादा होती है। भारत अपनी खाद्य तेलों का बड़ा आयात यूक्रेन से ही करता है। खासतौर पर सूर्यमुखी के तेलों का आयात किया जाता है। वैसे तो यूक्रेन गेहूं जैसे अनाज उत्पादन के मामले में दुनिया में काफी आगे है। इसे यूरोप का ब्रेड बॉस्केट भी कहा जाता है। जिस डोनबास पर रूस ने कब्जा किया है, वो इलाका मिनरल्स के मामले में काफी धनी है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जर्मनी यानी हिटलर की सेनाओं ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था और यहूदियों समेत करीब 70 लाख यूक्रेनी नागरिकों को मार डाला था।

पीएम मोदी ने कहा है कि भारत का विजडम ग्लोबल है, विजन ग्लोबल है। हमारे पूर्वजों ने हमें वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया है। भारत का कल्चर ग्लोबल है। केयर और कंपैशन ग्लोबल है। हमने पूरी दुनिया को एक परिवार माना है और यही आज के भारत की नीति और निर्णयों में नजर आता है। आज का भारत सबसे जुड़ना चाहता है, आज का भारत सबके विकास की बात करता है, आज का भारत सबके साथ है, सबके हित की सोचता है। हमें गर्व है कि आज दुनिया भारत को विश्व बंधु के रूप में सम्मान दे रही है। भारत इस क्षेत्र में स्थायी शांति का समर्थक है। भारत कूटनीति और संवाद में विश्वास करता है।

बीते जुलाई में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर गए थे। यूक्रेन में रूसी हमले के बाद पीएम मोदी का यह पहला रूस दौरा था। मॉस्को पहुंचते ही पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन एक दूसरे से गले मिले तो पश्चिम के मीडिया में इसकी जमकर आलोचना हुई। पुतिन और मोदी का गले मिलना यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को रास नहीं आया था। जेलेंस्की ने नौ जुलाई 2024 को इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था, आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए। इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे। रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया। एक ऐसे दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे खूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है। करीब डेढ़ महीने बाद मोदी अब यूक्रेन जा रहे हैं।

जुलाई में जापान के दौरे पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के ल‍िए भारत और ताकत लगाएगा। भारत भविष्य में यूक्रेन और रूस के साथ और अधिक संपर्क रखेगा क्योंकि दोनों पक्षों से बातचीत करने वाले देशों का इस तरह का संपर्क उनके बीच संघर्ष को सुलझाने के लिए बेहद अहम है। जयशंकर ने कहा कि भारत का रुख यह रहा है कि संघर्ष का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकलेगा। उन्होंने कहा था कि हम मानते हैं कि हमें वहां अधिक सक्रिय होना चाहिए।

जयशंकर ने इससे पहले मई में एक इंटरव्यू में यह दावा किया था कि पीएम मोदी ने फोन करके रूस और यूक्रेन युद्ध को दो बार रुकवाया था। उन्होंने कहा था कि पहली बार 5 मार्च को जब हमारे छात्र भारी गोलीबारी के बीच यूक्रेन में सुरक्षित इलाकों की ओर जा रहे थे, उस वक्त पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन किया था। उन्होंने पुतिन से भारतीय छात्रों के लिए सुरक्षित रास्ता देने के लिए गोलीबारी रोकने का आग्रह किया था। पीएम के अनुरोध पर रूसी सेना ने गोलीबारी रोकी, ताकि हमारे लोग वतन लौट सकें। जयशंकर ने बताया कि इसी तरह 8 मार्च को भी पीएम मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की से फोन पर बात की और भारतीय छात्रों के लिए रास्ता बनाया। उस वक्त भी गोलबारी रोकी गई और हमारे छात्रों के लिए सुरक्षित रास्ता दिया गया।

बीते 25 सालों में भारत और यूक्रेन के व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी हुई है। भारत के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2021-22 वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच 3.3 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। वहीं रूस और भारत के बीच तकरीबन 60 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। 2030 तक यह कारोबार करीब 100 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। खास बात यह है कि रूस के साथ भारत का व्यापार यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद बढ़ा है।

पीएम मोदी ने कभी यूक्रेन पर रूसी हमले की कभी निंदा नहीं की। उन्होंने कई मंचों से युद्ध का विरोध जरूर किया है। उन्होंने कई मंचों से शांति और मानवता की बात की है। यही बात अब वह फिर पोलैंड की धरती से भी कर रहे हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों का समर्थन भी नहीं किया। हालांकि, भारत यूक्रेन में मानवीय मदद पहुंचाता रहा है। युद्ध के दौरान मदद के तौर पर भारत से करीब 135 टन सामान यूक्रेन भेजे गए, जिनमें दवाएं, कंबल, टेंट, मेडिकल उपकरण से लेकर जनरेटर तक शामिल हैं।

दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, भारत के रूस से परंपरागत और ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत अपनी रक्षा जरूरतों और तकनीक के मामले में रूस पर अरसे से निर्भर रहा है। रूस भारत का ऐसा दोस्त है, जो उसके मुश्किल समय में साथ खड़ा दिखता रहा है। सोवियत संघ ने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध खत्म कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।

1971 में पाकिस्तान के साथ भारत की जंग हुई तो सोवियत रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के समर्थन में वीटो का इस्तेमाल किया था। उस वक्त प्रशांत महासागर में जब अमेरिका का जंगी बेड़ा पाकिस्तान के समर्थन में उतर आया था तो भारत को रूस से ही बड़ा समर्थन मिला था। वहीं, यूक्रेन के साथ भी भारत के संबंध काफी अच्छे रहे हैं। 2005 में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने यूक्रेन के साथ स्पेस रिसर्च में यूक्रेन के साथ सहयोग को मजबूत करने की जरूरत बताई थी। वह इसरो के वैज्ञानिकों के साथ यूक्रेन की स्पेस एजेंसी यूझनोए भी गए थे, जो दुनिया में रॉकेट बनाने वाले सबसे बड़ी एजेंसियों में से एक है।

दरअसल, जिस वक्त मोदी का यूक्रेन दौरा हो रहा है, उसी समय अमेरिका की अगुवाई में नाटो देशों की बैठक वॉशिंगटन में होने जा रही है। हालांकि, मोदी के यूक्रेन दौरे को अमेरिका से भी समर्थन मिला है। डॉ. धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, मोदी अपने दौरे से यह संदेश देना चाह रहे हैं कि भले ही भारत का झुकाव रूस की तरफ ज्यादा है, मगर वह मानवता के मामले में यूक्रेन के साथ हैं। यानी वह मौजूदा हालात में संतुलन साधने की कोशिश में लगे हैं। 8-9 जुलाई को जब वह पुतिन के साथ बैठे तो भी उन्होंने यूक्रेन के अस्पताल पर हुए रूसी हमले की सीधे तौर पर निंदा नहीं की, मगर उन्होंने निर्दोष लोगों पर किसी भी तरह के हमले की आलोचना जरूर की।

भारत और सोवियत यूनियन के बीच 1971 में पीस फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी हुई थी। जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो जनवरी 1993 में यह संधि इंडो-रशियन फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी में बदल गई थी। यूक्रेन सेपहले भी भारत सोवियत यूनियन के आक्रमण पर खामोशी बरतता रहा है। चाहे 1956 में हंगरी हो या 1968 में चेकोस्लोवाकिया या फिर 1979 में अफगानिस्तान पर हमला हो। हालांकि, यूक्रेन के मामले में भारत का रुख थोड़ा सा अलग रहा है। एक तरफ भारत रूस से संबंध बनाए रखता है, दूसरी तरफ वो यूक्रेन की मदद भी करता है। दरअसल, इस वक्त भारत की नीति तटस्थता की नहीं है, बल्कि सबसे अच्छे संबंध बनाए रखने की है। युद्ध के दौरान भी भारत का रूस के साथ या यूक्रेन के साथ कारोबार बढ़ा ही है। भारत अपने हितों के हिसाब से रूस या यूक्रेन के साथ अपने संबंध बढ़ा रहा है।
पोलैंड और यूक्रेन की मदद से भारतीय छात्र निकाले गए

रूस-यूक्रेन के युद्ध शुरू होने से पहले करीब 19,000 भारतीय छात्र यूक्रेन की यूनिवर्सिटीज में पढ़ रहे थे। फरवरी, 2022 में रूसी आक्रमण के बाद भारत, यूक्रेन और पोलैंड ने ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत वहां फंसे करीब 4 हजार भारतीय छात्रों को मिलकर निकाला था।

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