ऋषि पंचमी की पूजा से महिलाओं को ‘उन’ दिनों में हुई गलतियों से मिलेगा छुटकारा, जानिए इस व्रत की महिमा

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नई दिल्ली: आज रविवार, 8 सितंबर 2024 को ऋषि पंचमी है। यह पावन तिथि हर साल भादो महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। सनातन धर्म में ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) का बड़ा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा-अर्चना के साथ-साथ व्रत भी किया जाता है। महिलाओं के लिए इस दिन व्रत करने का खास महत्व है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस पंचमी का संबंध महिलाओं के पीरियड्स से है। पीरियड्स में धार्मिक कार्यों से जुड़े दोषों से मुक्ति के लिए महिलाएं विशेष रूप से इस व्रत को करती हैं। ऋषि पंचमी को लेकर कई अन्य मान्यताएं भी हैं। तो आइये जान लेते हैं इससे जुड़ी रोचक बातें-

इस व्रत में नहीं खाई जाती ऐसी वस्तुएं
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं। इस व्रत में हल से जोते हुए खेत से उत्पन्न होनी वाली समस्त वस्तुएं खाने की मनाही होती है। इसलिए फलाहार के रूप में भी जोते हुए खेत की वस्तुओं को नहीं खाना चाहिए। केवल वे ही पदार्थ काम में लाने चाहिए, जो बिना जोते-बोए या स्वयं उत्पन्न होते हैं। जैसे-साठी का चावल, नारी (करमुआ) का शाक आदि।

इस दिन गंगा स्नान का है खास महत्व
यह व्रत अशुद्धाचार के दोषों को मिटाने के लिए भी किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल किसी नदी या सरोवर पर जाकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। फिर घर में रंग-बिरंगा सर्वतोभद्र मंडल बनाकर सप्त ऋषियों की पूजा करें। पूजा के दौरान सब सामग्री दक्षिणा के समय आचार्य को दे दें और स्वयं ऋषि अन्न का भोजन करें।

इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
इस व्रत के संबंध में कई कथाएं कही जाती हैं। उनमें से एक भविष्योत्तर पुराण में दी गई कथा है जो संक्षेप में इस प्रकार है। इस पौराणिक कथा के अनुसार विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिनका नाम सुशीला था। ब्राह्मण दंपत्ति के एक पुत्र और एक पुत्री थी। विवाह योग्य होने पर उन्होंने कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद लड़की विधवा हो गई। तब दुःखी ब्राह्मण दम्पति कन्या समेत गंगा तट पर चले गए और वहीं कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि अचानक उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या की ऐसी स्थिति देख उसकी मां परेशान हो गई और जाकर पति से पूछा कि हे प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है ? उत्तंक जी उस समय समाधि में थे। उन्होंने इस घटना का पता लगाकर बताया कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। लेकिन इसने रजस्वला होते हुए बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। यदि ये कन्या शुद्ध मन से ऋषि पंचमी का व्रत करे तो इसके सारे दुःख अवश्य दूर हो जाएंगे और इसे अटल सौभाग्य की प्राप्त करेगी। तब पिता की आज्ञा से पुत्री ने ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया जिससे उसके सारे दुख दूर हो गए।

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