गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिपावली के दिन की शुरूआत अयोध्या से करते हैं. अयोध्या में भगवान श्रीराम के दर्शन और हनुमान जी का आशीर्वाद लेने के बाद गोरखपुर के वनटांगियां गांव जंगल तिकोनिया नम्बर 3 में पहुंचते हैं, जहां के लोग बड़े बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे होते हैं. बड़े बुजुर्गों को अपने बाबा का इंतजार रहता है तो बच्चों को टाफी वाले बाबा का इंतजार रहता है. गांववालों का अधिकार इतना है कि बुजुर्ग भी बच्चों की तरह जिद करते हैं कि दिपावली के दिन पहला दिया तो बाबा ही जलायेंगे नहीं तो हम लोग दिपावली नहीं मनायेंगे.
हर साल की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री अपना दिपावली गोरखपुर के कुसम्ही के जंगलों के बीच स्थित गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में मनाने आयेंगे। इस गांव की तस्वीर को मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने बदल कर रख दिया। 2017 के पहले यहां पर छोटे-छोटे मकान हुआ करते थे. 4 फिट से अधिक ऊंचा मकान नहीं बना सकते थे. साथ ही पक्का मकान नहीं बना सकते थे. लोग झोपड़ी में रहते थे. पहले की दशा सोचकर लोगों की रूह कांप जाती हैं. महिलाओं का कहना है कि 2017 के पहले अगर कोई व्यक्ति कच्चे ईंट की दीवार जोड़ने की कोशिश करता था वन विभाग वाले उसे पुलिस के हवाले कर देते थे. लड़कियों की शादी तो किसी तरह से हो जाती थी, पर लड़कों की शादी के लिए नाकों चने चबाने पड़ते थे, क्योंकि यहां कोई मूलभूत सुविधा तक नहीं थी.
ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई. इसकी भरपाई के लिए ब्रिटिश सरकार ने साखू के नए पौधों को लगाने और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों और मजदूरों को जंगल मे बसाया. साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की “टांगिया विधि” का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए. कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं. इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे. 1947 में देश भले आजाद हुआ, लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा.
जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी. नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं. जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी. पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं था. समय-समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से. 1995 में इन्हें वोट देने का अधिकार लोकसभा और विधानसभा में मिला पर अपनी ग्राम संसद चुनने का अधिकार राजस्व गांव का दर्जा प्राप्त करने बाद 2020 में मिला.
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने. उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं. नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी. वनटांगिया लोगों को शिक्षा के जरिये समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा तक झेला. 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे. वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी. योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका.
2009 में वनटांगियों को सामान्य नागरिक जैसा हक दिलाने की लड़ाई शुरू करने वाले योगी आदित्यनाथ ने 2009 से वनटांगिया समुदाय के साथ दिवाली मनाने की परंपरा शुरू की तो पहली बार इस समुदाय को जंगल से अलग भी जीवन के रंगों का अहसास हुआ. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी इस परंपरा का निर्वाह करना नहीं भूलते हैं. इस दौरान बच्चों को मिठाई, कॉपी-किताब और आतिशबाजी का उपहार देकर पढ़ने को प्रेरित करते हैं तो सभी बस्ती वालों को तमाम सौगात भी देते हैं.
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने वनटांगिया समुदाय की सौ साल की कसक मिटा दी है. लोकसभा में वनटांगिया अधिकारों के लिए लड़कर 2010 में अपने स्थान पर बने रहने का अधिकार पत्र दिलाने वाले योगी ने सीएम बनने के बाद अपने कार्यकाल के पहले ही साल वनटांगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया. राजस्व ग्राम घोषित होते ही ये वनग्राम हर उस सुविधा के हकदार हो गए जो सामान्य नागरिक को मिलती है. इसी अधिकार से उन्होंने पहली बार पंचायत चुनाव में भागीदारी की और गांव की सरकार चुनी. सिर्फ तिकोनिया नम्बर तीन ही नहीं, उसके समेत गोरखपुर-महराजगंज के 23 वनटांगिया गांवों में कायाकल्प सा परिवर्तन दिखता है.
सीएम योगी ने वनटांगिया गांवों को आवास, सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, स्ट्रीट लाइट, आंगनबाड़ी केंद्र और आरओ वाटर मशीन जैसी सुविधाएं प्रदान की. वनटांगिया गांवो में आज सभी के पास अपना सीएम योजना का पक्का आवास, कृषि योग्य भूमि, आधारकार्ड, राशनकार्ड, रसोई गैस है. बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं, पात्रों को वृद्धा, विधवा, दिव्यांग आदि पेंशन योजनाओं का लाभ मिल रहा है. इस गांव में आंगनबाड़ी केंद्र के साथ ही सरकारी प्राथमिक विद्यालय व जूनियर हाईस्कूल शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं. गांव की महिलाएं अभी से बाबा के आने का इंतजार कर रही हैं. उनके आने पर कौन से गीत से उनका स्वागत किया जायेगा, इसकी भी तैयारी कर रही हैं. महिलाओं का कहना है कि उन्होने हमारे गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है. 2017 से पहले हमारी जिन्दगी किसी तरह से चल रही थी और आज हम सामन्य गांव से भी अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं.