मुम्बई/रांची। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bharatiya Janata Party (BJP) के लिए लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) में मिली हार के बाद हरियाणा और जम्मू (Haryana and Jammu) में मिली जीत राहत की बात थी। अब आज महाराष्ट्र और झारखंड (Maharashtra and Jharkhand) विधानसभा चुनावों (Assembly elections) के परिणाम यह तय करेंगे कि पार्टी की स्थिति क्या होगी और वह अपने अभियान को लेकर किस तरह से आगे बढ़ेगी। यदि NDA इन दो राज्यों में जीत हासिल करता है या कम से कम महाराष्ट्र में जीत दर्ज करता है तो बीजेपी के लिए यह राहत वाली बात होगी। इस जीत से यह माना जाएगा कि लोकसभा चुनाव की हार एक अपवाद थी।
बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, “अगर हम हरियाणा विधानसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन यहां भी करते हैं तो लोकसभा चुनाव से पहले वाली राजनीति लौट आएगी।” अगर दोनों राज्यों में या कम से कम महाराष्ट्र में हार होती है तो यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। यह पार्टी की छवि पर लंबे समय तक असर डाल सकती है। हार से यह धारणा मजबूत हो सकती है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम वाकई एक नया रुझान साबित हो सकते हैं।
महाराष्ट्र में चुनावी दांव
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर असंतोष, उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति और शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के वोटरों में शरद पवार के प्रति वफादारी के संकेत थे। ये लोकसभा चुनावों में महायुति के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कारक माने गए थे। इससे निपटने के लिए एकनाथ शिंदे सरकार ने “माझी लड़की बहिन योजना” शुरू की है। इसका उद्देश्य महिला मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना है। इस योजना के जरिए 18 से 60 वर्ष की आयु वाली महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपये दी जाती है। महायुति ने चुनावों में जीतने पर इस राशि को 2,100 रुपये करने का वादा किया है।
बीजेपी ने “एक हैं तो सेफ हैं” और “बंटेंगे तो कटेंगे” जैसे नारों का भी सहारा लिया ताकि विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया जा सके कि बीजेपी आरक्षण को समाप्त करना चाहती है। चुनाव परिणामों से यह साफ हो जाएगा कि मतदाताओं ने इस संदेश को कैसे लिया।
झारखंड का महत्व
महाराष्ट्र से छोटा राज्य होने के बावजूद झारखंड बीजेपी के लिए कई कारणों से अहम है। इस राज्य में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में विपक्षी INDIA गठबंधन से बेहतर प्रदर्शन किया था, हालांकि उसे सभी पांच आदिवासी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इसलिए, पार्टी के लिए आदिवासी बेल्ट से बाहर अपनी मजबूत सीटों को बनाए रखना और आदिवासी सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करना बेहद महत्वपूर्ण है। इससे यह धारणा बदल सके कि पार्टी ने आदिवासी वोट खो दिए हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कुछ समय के लिए जेल भेजे जाने के बाद इस बात का भी प्रचार हुआ कि उन्हें आदिवासी समुदाय से होने के कारण टार्गेट किया गया था। इससे बीजेपी को वह मुद्दा नहीं मिल पाया जो उसने राष्ट्रपति पद पर आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को नियुक्त करके हासिल किया था।
बीजेपी ने इस धारणा को बदलने के लिए चंपाई सोरेन को पार्टी में शामिल किया, जिन्होंने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद अस्थायी रूप से मुख्यमंत्री का पद संभाला था। इसके बाद पार्टी ने यह अभियान चलाया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सरकार ने राज्य के संथाल परगना जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में बांग्लादेशी “अवैध प्रवासियों” को बसने की अनुमति दी और उन्हें वोटर बनाने के लिए दस्तावेज दिए। बीजेपी का आरोप था कि ये “घुसपैठिए” आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे और आदिवासी भूमि पर कब्जा कर रहे, जिससे संथाल परगना में आदिवासी जनसंख्या में कमी आई है।
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम बीजेपी के लिए न केवल चुनावी रणनीति का आकलन करेंगे, बल्कि यह भी तय करेंगे कि पार्टी के सहयोगी किस हद तक उसके साथ मजबूती से खड़े रहते हैं और वह आगामी संसद सत्र में किस तरह से विपक्ष के आरोपों का सामना करती है।