पत्रकारों के लिए अच्छा नहीं रहा वर्ष 2024, 104 पत्रकार मारे गए…500 से अधिक जेलों में कैद, आईएफजे की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
नई दिल्ली: दुनियाभर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात होती है, जिससे जनता की आवाज प्रशासकों तक पहुंच सके। लोकतात्रिंक देशों में जनता की आवाज उठाने में प्रेस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डिजिटल के दौर में एक तरफ प्रेस मजबूत एवं प्रभावशाली हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ प्रेस दमन भी निर्ममता से किया गया है। वर्ष 2024 खत्म होने वाला है। यह साल पत्रकारों के लिए अच्छा नहीं रहा है। सैकड़ों पत्रकार मारे गए हैं। साथ 500 से अधिक जेलों में हैं, जो फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को कमजोर करती है।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने मंगलवार को कहा कि 2024 में अब तक 104 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे जा चुके हैं, जिनमें से आधे से अधिक ने गाजा पट्टी में इजराइल-हमास युद्ध के दौरान जान गंवाई। समूह ने कहा कि सात अक्टूबर, 2023 को युद्ध शुरू होने के बाद से, कम से कम 138 मीडियाकर्मी मारे गए हैं। जिसमें इस साल जनवरी से अब तक 55 जान गंवाने वाले फलस्तीनी मीडिया पेशेवर शामिल हैं।
जेल में बंद पत्रकारों की संख्या भी बढ़ रही
वैश्विक स्तर पर हुई मौतों के अलावा, आईएफजे ने कहा कि जेल में बंद पत्रकारों की संख्या भी बढ़ रही है, जो पिछले वर्ष 427 की तुलना में बढ़कर 520 हो गई है। आईएफजे महासचिव एंथनी बेलेंजर ने कहा, ‘‘ये दुखद आंकड़े एक बार फिर दिखाते हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता कितनी नाजुक है और पत्रकारिता का पेशा कितना जोखिम भरा और खतरनाक है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में तानाशाही शासन व्यवस्था विकसित हो रही है, जनता को सूचना की बहुत आवश्यकता है।” समूह ने कहा कि कारावास के मामले में चीन और हांगकांग ने 135 पत्रकारों को सलाखों के पीछे रखा है।
2024 में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति चुनौतीपूर्ण रही, हालांकि इसमें मामूली सुधार देखा गया। भारत की रैंकिंग विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 161 से बढ़कर 159 हो गई, लेकिन यह अभी भी निचले स्तर पर बनी हुई है। यह सूचकांक फ्रांसीसी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी किया जाता है और प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न पहलुओं जैसे राजनीतिक, कानूनी, और आर्थिक संदर्भों का आकलन करता है।