नई दिल्ली : जहां एक तरफ कर्नाटक के बेंगलुरु में कथित तौर पर आत्महत्या करने वाले इंजीनियर के परिवार ने उसके लिए न्याय और उसका उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई है। वहीं अतुल सुभाष के इस आत्महत्या के बाद पुरुषों के उत्पीड़न और दहेज कानून के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है।
जनहित याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है। इस याचिका में पुरुषों के उत्पीड़न और दहेज कानूनों के गलत इस्तेमाल को लेकर बात की गई है। याचिका में विवाहितों पुरुषों की सुरक्षा की मांग की गई है। याचिका में कहा गया कि आज दहेज उत्पीड़न कानूनों का इस्तेमाल पति और उसके परिवार को ब्लैकमेल करने के लिए किया जा रहा है। इसके साथ ही उनकी तरफ से कहा जाता है कि दहेज की मांग की जा रही है. हालांकि ऐसा बहुत कम होता है।
याचिका में कहा गया कि महिलाएं हर छोटी बात पर इन कानूनों का इस्तेमाल करती हैं। जिसके कारण आज देश में अधिकतर मामले झूठे दर्ज हैं। दहेज मामलों में पुरूषों के झूठे मामले हर रोज बढते जा रहे हैं. इन कानूनों पर समय रहते सुधार करने की मांग की गई है।
वहीं बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराने के लिए केवल उत्पीड़न पर्याप्त नहीं है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट सबूत होने चाहिए। इस बाबत जस्टीस विक्रम नाथ और जस्टीस पी बी वराले की बेंच ने यह टिप्पणी गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर अपना फैसला सुनाते हुए की, जिसमें एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए उसके पति और उसके दो ससुराल वालों को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था। हाल ही में 34 वर्षीय इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले के मद्देनजर, इस फैसले में की गई न्यायलय की टिप्पणियां महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं।
जानकारी दें कि, अतुल सुभाष ने अपनी अलग रह रही पत्नी और उसके परिवार के हाथों उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया, निकिता की मां निशा, पिता अनुराग और चाचा सुशील के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। शीर्ष अदालत की टिप्पणियां निकिता और उसके परिवार के सदस्यों के लिए मददगार साबित हो सकती हैं।