ज्यादातर मरीजों में संक्रमण के बाद गया कि उनकी दिमाग की नसें फट रही है ! जिससे लोगों की जाने भी जा रही है ,
IGIMS में 15 दिनों में ब्रेन स्ट्रोक 42 मामलों में 30 में पोस्ट कोविड की शिकायत है ! बिहार के पटना में इसके चौकाने वाले मामले सामने आए है!
दूसरी लहर में ब्रेन स्ट्रोक जैसे मामले सामने नहीं आए थे, बिहार की जनता ओमीकोन के मामले ज्यादा आए हैं जिसके बाद वहां ब्रेन स्ट्रोक के मामले भी ज्यादा आ रहे , इंदिरा गाँधी संस्थान में ब्रेन स्ट्रोक के इन मामलों ने डॉक्टरों को चौका दिया है!हॉस्पिटल में ब्रेन स्ट्रोक के मरीज के लिए बेड नहीं मिल रहे है, 15 दिनों में 42 से ज्यादा ब्रेन स्ट्रोक के मरीज भर्ती हुए है
IGIMS के मेडिकल डाक्टर ने कहा कि यह एक शोध का विषय है, डाक्टर मनीष का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि संक्रमण के बाद नसें कमजोर हो रही हो, जिससे दिमाग की नसें फट रही है! यह एक गंभीर शोध का विषय है! इसको लेकर अब तक कई रिसर्च की जा चुकी हैं। इन रिसर्च से इसका एक कारण यह सामने आया है कि कोरोना से पीड़ित मरीजों के शरीर में डी-डाइमर नाम के केमिकल की मात्रा ज्यादा हो जाती है, जो खून के थक्कों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। तो अगर मरीज पहले से किसी मस्तिष्क संबंधी समस्या से जूझ रहा है तो उसमें स्ट्रोक की आशंका बहुत बढ़ जाती है।
स्ट्रोक के मामले में समय पर इसके लक्षणों की पहचान और उसका निदान जरूरी है। जबसे लॉकडाउन लगा है, तबसे अस्पतालों में निदान के लिए सही समय पर पहुंचने वाले मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई है। आजकल यदि किसी परिवार में किसी सदस्य में स्ट्रोक के लक्षण नज़र आते हैं तो वे कोरोना के डर से मरीज को अस्पताल ले ही नहीं जाते हैं। ऐसे में मरीज का निदान देर से होने के कारण गोल्डन टाइम निकल जाता है।