आखिर 3.84 लाख किलोमीटर दूर चांद के लिए दुनियाभर में क्यों छिड़ी है जंग? चीन-अमेरिका के सामने भारत के मिशन में कितना है दम?
दुनिया में इन दिनों जंग जैसे हालात बने हुए हैं. एक ओर जहां अमेरिका के खिलाफ चीन, साउथ चाइना सी में मोर्चा खोले बैठा है तो वहीं रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला करने को तैयार है. जमीन पर दो देशों के बीच जंग तो कई बार दुनिया देख चुकी है लेकिन अब ये लड़ाई धरती से 3 लाख 84 हज़ार किलोमीटर दूर चांद तक पहुंच गई है. अमेरिका और चीन के बीच अंतरिक्ष को लेकर जंग छिड़ती दिखाई दे रही है. अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने अपोलो 11 मिशन के तरह 20 जुलाई 1969 को पहली बार चांद पर अपने कदम रखे थे. इस सफलता के बाद अमेरिका ने अगले तीन साल तक अंतरिक्षयात्रियों के साथ कई अपोला यान को चांद पर भेजा. हालांकि इस मिशन में काफी ज्यादा खर्च हो जाने और ज्यादा जानकारी न मिल पाने के कारण इस मिशन को साल 1972 में पूरी तरह से बंद कर दिया गया.
अमेरिका ने साल 1972 में आखिरी अपोला यान चांद पर भेजा था. काफी लंबे इंतजार के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक बार फिर ‘मून मिशन’ की तैयारियों में जुटा हुआ है. नासा ‘आर्टेमिस प्रोग्राम’ के तहत मानव रहित अंतरिक्ष यान को चांद भेजने की तैयारी कर रहा है. अमेरिका ने पहले हुई गलतियों से सबक लेते हुए दुनिया की तीन बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों को भी अपने इस अभियान का हिस्सा बनाया है. ये तीनों एजेंसियां यूरोप, कनाडा और जापान से हैं. यही नहीं नासा ने इन तीनों बड़े देशों की एजेंसियों के अलावा, ब्राजील, न्यूजीलैंड, इटली, यूक्रेन, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको और पोलैंड की स्पेस एजेंसियों से आर्टेमिस मिशन के लिए समझौता किया है.
चीन पहले ही चांद पर अपने कदम जमा चुका है
चांद पर दुनियाभर के देशों की नजर है. मिशन मून से जुड़े प्रयोगों में चीन दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जो सबसे ज्यादा प्रयोग कर रहा है. चीन चांद पर पहले ही सफलतापूर्वक अपना रोवर उतार चुका है. चीन का ये रोवर वहां से एक किलो 731 ग्राम नमूने लेकर लौटा था. इस रोवर के अलावा भी चीन के दो और रोवर झूरोंग और यूटू-2 अभी भी चांद पर मौजूद हैं और चांद से जुड़ी अहम जानकारी धरती पर भेज रहे हैं.
अमेरिका की चांद पर आर्टेमिस बेस कैंप बनाने की है योजना
नासा चांद पर एक ऐसा आर्टेमिस बेस कैंप बनाने जा रहा है, जहां अंतरिक्ष यात्री रह सकेंगे. इसके साथ ही नासा अंतरिक्ष में एक गेटवे भी बनाएगा, जिसके जरिए अंतरिक्षयात्री चांद की ओर बढ़ने की अपनी यात्रा पूरी करेंगे. इसमें एक अत्याधुनिक मोबाइल घर और रोवर होगा, जिनकी मदद से चांद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को हासिल किया जा सकेगा. दोनों ही देशों को पता है कि अगर उन्होंने मिशन मून में सफलता हासिल कर ली तो उनके लिए मंगल की राह आसान हो जाएगी.
चांद के जरिए मंगल पर फतह करने की तैयारी में जुटे बड़े देश
आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत जो जानकारी हासिल की जाएगी, उसका इस्तेमाल गेटवे बनाने में किया जाएगा. गेटवे चांद के पास अंतरिक्ष में बनाया गया आउटपोस्ट होगा. इसके जरिए लंबे वक्त तक चांद पर इंसानों के रहने में मदद मिलेगी. नासा ने वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर सबकुछ योजना के मुताबिक चलता रहा तो साल 2025 में नासा आर्टेमिस-3 के जरिए चांद पर इंसानों को भेजने के लिए तैयार होगा. बता दें कि अपोलो 17 के बाद पहली बाहर होगा जब कोई अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखेगा. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लेरिडा प्लानेटरी साइंटिस्ट डॉ. हान्ना सार्जेंट के बीबीसी को बताया था कि चांद पर कदम रखना एक बड़े मिशन की ओर बढ़ाया गया एक कदम होगा. वैज्ञानिकों ने अगर चांद के पास अपना स्पेश स्टेशन और चांद पर बेस कैंप बना लिया तो वह मंगल पर भी इंसान को भेजने के लिए तैयार होगा.
भारत की चंद्रयान को लेकर क्या है तैयारी?
भारत ने भी चांद की जमीन पर उतारने के लिए 2019 में अपने चंद्रयान को भेजा था, लेकिन उसका मिशन कामयाब नहीं हो सका था. भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) चंद्रयान-3 नाम का एक और मिशन शुरू करने वाला है. वैज्ञानिकों से मिली जानकारी के मुताबिक इसरो इस साल के अंत तक एक अंतरिक्ष यान, एक रोवर और एक लैंडर वाले चंद्रयान-3 को लॉन्च कर सकता है. ये एक ऑर्बिटर मिशन होगा जो चांद पर एक सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश करेगा. रोवर चांद की तस्वीरें पृथ्वी पर भेजेगा, जिससे चांद की सतह की जानकारी लेना आसान होगा. भारतीय वैज्ञानिक चंद्रयान-3 के जरिए चांद के डार्क साइड पर अपना रोवर उतारने की योजना बना रहे हैं. ये चांद का वो हिस्सा है, जिस पर अरबो सालों से सूरज की रोशन नहीं पहुंची है. ऐसा माना जाता है कि इस हिस्से में बर्फ और कई तरह के खनिज पदार्थ मिल सकते हैं.
जापान का एसएलआईएम मिशन के जरिए चांद की होगी निगरानी
जपानी स्पेस एजेंसी (जेएएक्सए) इस साल अप्रैल में चांद पर एक लैंडर उतारने की योजना बना रहा है. स्मार्ट लैंडर फॉक इन्वेस्टिगेटिंग द मून (एसएलआईएम) मिशन के जरिए चांद की निगरानी की जाएगी. इस मिशन के जरिए चांद पर मौजूद गड्ढों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की जाएगी. इसमें एक्स रे इमेजिंग एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन नामका एक स्पेस टेलिस्कोप भी होगा. इसके साथ जापानी कंपनी आईस्पेस भी इस साल के अंत तक अपना लैंडर चांद पर भेजने की तैयारी में है. जापान के साथ ही रूस लूना-25 मिशन और दक्षिण कोरिया लूनर ऑर्बिटर मिश्न की मदद से चांद पर कदम रखने की तैयारी में हैं.