कर्नाटक में जातीय सर्वे के बाद मचा बवाल, कांग्रेस के भीतर छिड़ी नई बहस; राज्य में OBC अनुमान से कई गुना ज्यादा
बेंगलुरु: कर्नाटक में हाल ही में पेश किए गए जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने कांग्रेस पार्टी के भीतर एक नई बहस छेड़ दी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार के सामने यह रिपोर्ट 13 अप्रैल को पेश की गई थी, जिसने राज्य में ओबीसी की जनसंख्या को 69.6 प्रतिशत बताया जो अब तक की अनुमानित संख्या से करीब 38 प्रतिशत अधिक है। इस रिपोर्ट ने जहां कुछ समुदायों को बढ़ी हुई आरक्षण की उम्मीद दी है, वहीं कुछ प्रभावशाली जातियों में असंतोष भी पैदा कर दिया है। खासकर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के नेताओं के बीच यह चिंता गहराती जा रही है कि उनकी राजनीतिक ताकत को अब चुनौती मिल सकती है।
आंकड़े जो चौंकाते हैं, और आरोप जो बेचैन करते हैं
सर्वे में लिंगायत समुदाय की जनसंख्या को 13.6% और वोक्कालिगा को 12.2% बताया गया है, जबकि इनके पारंपरिक अनुमान क्रमश: 15% और 17% माने जाते रहे हैं। इससे जुड़ी चिंता यह है कि टिकट वितरण जैसे निर्णयों पर अब इन आंकड़ों का प्रभाव पड़ेगा, जिससे उनकी राजनीतिक मौजूदगी पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में जहां इन समुदायों के लिए 3 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण की सिफारिश की गई है, वहीं एक और बड़ा बदलाव चर्चा में है वह है सीएम सिद्धारमैया के समुदाय कुरुबा के लिए प्रस्तावित नया “मोस्ट बैकवर्ड क्लास” (MBC) कैटेगरी।II A श्रेणी में पहले शामिल कुरुबाओं को अब अलग I B वर्ग में डालने और 12% आरक्षण देने की सिफारिश की गई है। इसके चलते बाकी II A वर्ग के लिए कोटा घटाकर 10% कर दिया गया है, जिससे अन्य समुदायों में असंतोष है। कुछ नेताओं ने इसे “जानबूझकर किया गया पक्षपात” करार दिया है।
क्या पुराना डेटा नई बहस को हवा दे रहा है?
एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि जिस सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट बनी है, वह 2015 में किया गया था। कांग्रेस के कुछ नेता मानते हैं कि अब नए आंकड़ों की जरूरत है और किसी पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में नई समिति बनाकर पूरे आरक्षण ढांचे की समीक्षा होनी चाहिए। इस पूरे मुद्दे के बीच राहुल गांधी की राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी और वंचित वर्गों के लिए चल रही मुहिम को भी झटका लग सकता है। जहां एक ओर गांधी इसे कांग्रेस की वापसी का आधार बना रहे हैं, वहीं अंदरूनी कलह पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े कर रही है। जरूरी यह है कि क्या कांग्रेस इन आंकड़ों को अपने पक्ष में मोड़ पाती है या फिर यह मुद्दा उसके लिए एक नया राजनीतिक संकट बन जाएगा।