अखिलेश का विपक्ष में कद बढ़ेगा, कांग्रेस भी सुधरी, 2024 में कैसे विपक्ष ने तोड़ा बीजेपी का गढ़

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नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 में वोटों की गिनती जारी है। अब तक हुई वोटो की गिनती में एनडीए और इंडिया गठबंधन में जबरदस्त मुकाबला दिख रहा है। खासकर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दोनों गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। अब तक आए रुझानों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन के सामने जबरदस्त चुनौती पेश कर रहा है। खबर लिखे जाने तक आए रुझानों में एनडीए गठबंधन 294 सीटों पर आगे तो इंडिया गठबंधन भी 224 सीटों पर बढ़त बनाए हुए नजर आ रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा 36, बीजेपी 32 और कांग्रेस 6 सीटों पर आगे चल रही है। यहां सपा और कांग्रेस की सीटों को जोड़ दें तो यह नंबर 42 पर पहुंच जाता है।

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार दावा कर रहे थे इस बार इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में चौंकाने वाला प्रदर्शन करेगा। उस वक्त बहुत कम लोगों को अखिलेश यादव के दावों पर यकीन हो रहा होगा। अब तक आए रुझानों को देखें तो अखिलेश यादव कहीं ना कहीं अपने दावों को सच करते हुए दिखा रहे हैं। प्रचार के दौरान अखिलेश यादव पीएम मोदी की संसदीय सीट वाराणसी को छोड़कर 79 सीटों पर गठबंधन के जीत के दावे कर रहे थे। लेकिन जब मंगलवार को वोटो की गिनती शुरू हुई तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक समय करीब 7 हजार वोटों से कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय से पीछे चल रहे थे।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर कई बार प्रत्याशी बदले। उनके इस फैसले पर लगातार सवाल उठते रहे, लेकिन अब जब चुनाव के रुझान आ रहे हैं तब उसपर नए सिरे से बातचीत शुरू हो गई है। अखिलेश यादव ने इस बार प्रत्याशी चुनने में काफी होशियारी दिखाई है। उन्होंने अपने परिवार के चार प्रत्याशियों के अलावा यादव समाज से किसी बाहरी को टिकट नहीं दिया है। अखिलेश ने अन्य ओबीसी जाति के नेताओं को टिकट देकर अपनी चुनाव को अलग मोड़ देने की कोशिश की। उनका यह कदम अब तक के रुझानों में सफल साबित होता दिख रहा है।

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरा अखिलेश यादव ने राहुल गांधी की कांग्रेस के साथ गठबंधन की थी, लेकिन उस वक्त वह पूरी तरह फेल साबित हुआ। 2019 में अखिलेश यादव ने मायावती को गठबंधन में लेकर आए, लेकिन वह भी करीब-करीब फेल ही रही। इसके बाद एक बार फिर से 2024 में अखिलेश यादव कांग्रेस को साथ लेकर चुनाव में उतरे। बीजेपी लगातार कर रही थी कि एक बार फिर से यूपी के दोनों लड़के की जोड़ी को जनता नकार देगी। लेकिन अबतक के रुझानों में ये दावा उलट होता दिख रहा है।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि सपा और कांग्रेस के साथ आने और बीएसपी के लड़ाई से खुद को अलग करने से जमीन पर समीकरण पूरी तरह बदलते हुए दिख रहे हैं। खासकर संविधान बचाने वाले नारे के चलते दलित वोटों का कुछ हिस्सा भी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के साथ जाते दिख रहे हैं।

2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 21 सीटें आई थी। उस जीत का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया था। कांग्रेस के इसी प्रदर्शन के चलते यूपीए की लगातार दूसरी बार केंद्र में सरकार बनी। वहीं 2014 में कांग्रेस रायबरेली और अमेठी पर सिमट गई। 2019 में राहुल गांधी खुद अमेठी से चुनाव हार गए। 2024 में अब तक जिस तरह के रुझान आ रहे हैं उसे देखकर यही लगता है कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी पर यूपीर की जनता ने भरोसा किया। दोनों नेताओं ने पेपर लीक और अग्निवीर के मुद्दे को जोर शोर से उठाया है।

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