गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवार टिकट की दौड़ में पिछड़े, कांग्रेस ने भी बदली अपनी रणनीति!

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नई दिल्‍ली। गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) को लेकर सरगर्मी बढ़ी हुई है. इसी कड़ी में राज्य में मुस्लिम वोट को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं. हालांकि टिकट की दौड़ में मुस्लिम उम्मीदवार (muslim candidate) पीछे छूटते नजर आ रहे हैं. पिछली बार कांग्रेस (Congress) ने गुजरात विधानसभा चुनाव में 10 या अधिक मुसलमानों को 1995 में मैदान में उतारा था. वहीं गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के इतिहास में चुनाव लड़ने वाला एकमात्र अल्पसंख्यक सदस्य 24 साल पहले था.

गुजरात में 9% आबादी मुस्लिम आबादी (Muslim population) है. राज्य विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है. दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने चुनाव में मुख्य मानदंड (Criteria) के रूप में उम्मीदवार की ‘जीतने की क्षमता’ का हवाला दिया है. कांग्रेस (Congress) ने अब तक जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है उनमें से छह मुस्लिम हैं. बीजेपी के 166 उम्मीदवारों में से एक भी मुस्लिम नहीं है.

कांग्रेस ने 27 साल पहले किया था ऐसा
कांग्रेस की अल्पसंख्यक शाखा ने इस चुनाव में मुसलमानों के लिए 11 टिकट मांगे हैं. हालांकि पिछली बार ऐसा 27 साल पहले हुआ था जब कांग्रेस ने 10 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए थे. पिछले चार दशकों में कांग्रेस ने सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवार 1980 में उतारे थे. तब कांग्रेस ने 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. उस समय पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने सफलतापूर्वक अपना KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, अहमद आदिवासी, मुस्लिम) चुनावी गणित पेश किया था. जिसका परिणाम उत्साहजनक रहा और मतदाताओं ने विधानसभा में 12 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीताकर भेजा था.

घटती गई मुस्लिम प्रतिनिधित्व की संख्या
हालांकि, इस सफलता (success) के बावजूद, कांग्रेस ने KHAM फॉर्मूले को आगे बढ़ाते हुए, 1985 में अपने मुस्लिम उम्मीदवारों को घटाकर 11 कर दिया था जिसमें आठ चुने गए थे. 1990 के विधानसभा चुनाव तक, बीजेपी के राम जन्मभूमि अभियान ने हिंदुत्व की राजनीति का मार्ग तैयार कर दिया था. बीजेपी और उसके सहयोगी जनता दल ने उस चुनाव में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा और कांग्रेस ने 11 को मैदान में उतारा, जिनमें से केवल दो ही जीत पाए.

1998 में स्थिति में हुआ थोड़ा सुधार
1995 में, कांग्रेस ने जिन 10 मुसलमानों को मैदान में उतारा था, वे सभी हार गए. उसमंगा नी देवदीवाला जमालपुर से निर्दलीय चुने गए एकमात्र मुस्लिम विधायक (muslim legislator) थे. 1998 में मुस्लिम प्रतिनिधित्व में थोड़ा सुधार हुआ. कांग्रेस ने नौ मुसलमानों को मैदान में उतारा और पांच जीते. बीजेपी ने भरूच जिले की वागरा सीट से एक मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुलगनी कुरैशी को भी मैदान में उतारा, जो हार गए. बीजेपी की स्थापना के बाद से ही वह एकमात्र मुस्लिम हैं, जिन्होंने गुजरात के विधानसभा चुनावों में मैदान में उतारा गया. उसके बाद से बीजेपी ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है.

दंगों ने मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया
2002 में गोधरा ट्रेनकांड और उसके बाद राज्य में हुए दंगों ने मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया. कांग्रेस ने 2002 के चुनाव में मुसलमानों को सिर्फ पांच टिकट दिए. तब से, पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकटों का वितरण कभी भी छह से अधिक नहीं किया. बीजेपी ने उम्मीदवारों को चुनने में एकमात्र मानदंड के रूप में ‘जीतने की क्षमता’ का हवाला दिया है. पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मोहसिन लोखंडवाला (Mohsin Lokhandwala) ने कहा, “आरक्षित सीटों को छोड़कर, पार्टी केवल उम्मीदवार की जीत की क्षमता को मानदंड मानती है. न केवल विधानसभा चुनावों के लिए बल्कि नगर पालिका या नगर निगम चुनावों में भी, उम्मीदवार की जीतने की क्षमता ही मायने रखती है.”

कांग्रेस भी बीजेपी की राह पर?
बीजेपी मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी वाले क्षेत्रों में निकाय चुनावों के दौरान मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारती है. ऐसा लगता है कि ये भावना कांग्रेस में भी फैल गई है. खड़िया-जमालपुर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक इमरान खेड़ावाला ने कहा, “राजनीतिक दल एक निर्वाचन क्षेत्र के समीकरणों को देखने के बाद एक उम्मीदवार की जीत की क्षमता पर विचार करते हैं. कांग्रेस अल्पसंख्यकों को टिकट देती है, लेकिन वह भी स्थानीय समीकरणों पर निर्भर करती है.” खेड़ावाला एकमात्र विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है जहां मुस्लिम मतदाताओं का बहुमत (61%) है. निवर्तमान विधानसभा में, कांग्रेस के तीन मुस्लिम विधायक हैं- जमालपुर खड़िया से इमरान खेड़ावाला, दरियापुर से ग्यासुद्दीन शेख और वांकानेर निर्वाचन क्षेत्र से जाविद पीरजादा.

एआईएमआईएम से मिलती है चुनौती
कांग्रेस को ऐसी सीटों पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असर का भी पता है. जहां मुस्लिम वोट सबसे ज्यादा मायने रखते हैं. एआईएमआईएम ने दो साल पहले अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के चुनाव में सात सीटें जीती थीं, जिससे जमालपुर और बेहरामपुरा वार्डों में कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा था. काबलीवाला गुजरात में एआईएमआईएम के प्रमुख हैं. वे कांग्रेस से अलग हो गए थे और 2012 में जमालपुर में पार्टी की हार में एक कारक थे.

कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख वजीर खान कहते हैं, ”हमने 11 टिकट मांगे हैं. यह एक सच्चाई है कि सदन में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व कम है. 2002 के दंगों के बाद बहुत कम सीटों पर अल्पसंख्यक उम्मीदवार जीत पाए हैं. अल्पसंख्यक समुदायों के नेता अब पार्टी की बैक-रूम रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.”

कितने मुसलमानों को मिला टिकट?
बहरहाल, अब इस बात का इंतजार है कि कांग्रेस मुसलमानों को कितने टिकट देती है, खासकर जब राज्य इकाई का मार्गदर्शन करने के लिए दिग्गज नेता अहमद पटेल अब नहीं हैं. पटेल के कद का राजनेता भी 1990 के दशक की शुरुआत से लोकसभा के लिए अपना रास्ता नहीं बना सका, यह गुजरात की चुनावी राजनीति में मुसलमानों के हाशिए पर जाने का एक और प्रतिबिंब है. इस साल गुजरात चुनाव लड़ रही एआईएमआईएम ने अब तक पांच उम्मीदवारों का नाम दिया है, जिनमें से चार मुस्लिम हैं. आम आदमी पार्टी (आप), जिसने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है, उसके अब तक के 157 उम्मीदवारों में तीन मुसलमान हैं. बता दें कि, गुजरात में 1 और 5 नवंबर को वोटिंग होनी है और 8 दिसंबर को नतीजे आएंगे.

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