कान की समस्याओं की वजह से होता है बैलेंस डिसऑर्डर वर्टिगो

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नई दिल्ली: वर्टिगो एक बैलेंस डिसऑर्डर है जो आमतौर पर अंदरूनी कान की समस्याओं की वजह से होता है इससे अचानक ही असहज-सा अनुभव होता है। ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया घूम रही हो यह शरीर के वेस्टिवुलर सिस्टम में रुकावट पैदा कर देता है जोकि एक आंतरिक जीपीएस की तरह काम करता है और इसका काम होता है संतुलन बनाए रखना। यह चक्कर बिना किसी चेतावनी के हो सकता है, जिससे गिरने और फ्रैक्चर का डर रहता है।

वर्टिगो एक आम समस्या है और 10 में से 1 व्यक्ति कभी ना कभी जीवनकाल में इसका अनुभव जरूर करते हैं। भारत में 0.71 प्रतिशत लोगों में वर्टिगो की समस्या है जोकि 90 लाख का आंकड़ा होता है। 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में 30 प्रतिशत और 85 साल से अधिक उम्र के 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के प्रभावित होने के साथ यह ज्यादातर बुजुर्गों में देखने को मिलता है।

महिलाओं में दो से तीन गुना ज्यादा खतरा
महिलाओं को वर्टिगो की समस्या से प्रभावित होने का खतरा दो से तीन गुना ज्यादा है। डॉ. जेजॉय करणकुमार मेडिकल डायरेक्टर एबॅट इंडिया का कहना है वैसे वर्टिगो कमजोर कर देने वाली समस्या है जो किसी की जिंदगी को काफी प्रभावित कर सकती है लेकिन सही देखभाल से इसका प्रबंधन किया जा सकता है। एबॅट में हम वर्टिगो को लेकर जागरूकता फैलाने और भरोसेमंद समाधान देने के लिये प्रतिबद्ध हैं इसलिए हम पढ़ने योग्य सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं जिसमें वेस्टिवुलर एक्सरसाइज के वीडियो ट्यूटोरियल शामिल हैं, ताकि रोगी आत्मविश्वास के साथ आगे कदम बढ़ पाएं। वे अपना संतुलन दोबारा हासिल कर पाएं और जिंदगी को खुलकर, सेहतमंद तरीके से जी पाएं।

जागरूकता बढ़ाने की जरूरत
डॉ. एसपी दुबे ईएनटी सर्जन दिव्या एडवांस्ड ईएनटी क्लीनिक भोपाल का कहना है वर्टिगो को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है ताकि लोग जल्द मदद ले पाएं यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अन्य बीमारियों के भी लक्षण हो सकते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो सकती है और गंभीर परिणाम हो सकते हैं और फ्रैक्चर या गिरने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। एक्सरसाइज-आधारित और चिकित्सकीय उपचार करवाने से, उनकी जीवनशैली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। वर्टिगो के साथ घर के अंदर चलना-फिरना, ग्रॉसरी शॉपिंग काम के लिये बाहर जाना जैसे रोजमर्रा के काम मुश्किल हो जाते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति के अंदर घर में बंद रहने की इच्छा सामाजिक मेल-मिलाप पर दुष्प्रभाव डालती है जिससे आत्मनिर्भरता खत्म हो जाती है।

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