नई दिल्ली: आप सभी ने त्रिमूर्ति के बारे में सुना और पढ़ा तो होगा ही, ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह दुनिया के सबसे ताकतवर भगवान हैं। हिन्दू धर्म में विष्णु और शिव की तो पूजा होते हुए आपने देखा ही होगा लेकिन दुनिया बनाने वाले ब्रह्मा जी की पूजा होते हुए नही देखा होगा। जितने भी जीव जंतु हैं वे सब ब्रह्मा से उत्पन हुए हैं। ब्रह्मा बुद्धि के देवता हैं और चारों वेद ब्रह्मा के सिर से उत्पन हुए हैं। इतने सब के बाद भी ब्रह्मा की पूजा नहीं होती है, आईये जानते हैं क्यों।
शिव ने दिया श्राप एक बार ब्रह्माजी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया।
ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को श्राप दिया कि पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा। इसलिए ब्रह्माजी पूजा नही होती है। सरस्वती का अभिशाप एक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने श्रिष्टि के निर्माण के बाद देवी सरस्वती को बनाया। सरस्वती को बनाने के बाद ब्रह्मा जी उनकी खूबसूरती से मोहित हो गए। सरस्वती ब्रह्मा से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाना चाहती थी इसीलिए उन्होंने अपना रूप बदल लिया। लेकिन ब्रह्मा ने हार नहीं मानी। अंत सरस्वती ने गुस्से में आकर ब्रह्मा को शाप दे दिया कि दुनिया का निर्माण करने के बावजूद उनकी पूजा नहीं की जायेगी। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि बुनियादी इच्छाओं से मुक्ति पाने के बाद ही इंसान भगवान को प्राप्त करता है लेकिन जिसने दुनिया बनायीं वह इससे बाहर नहीं निकला है इसलिए उसका अंत निश्चित है।