नई दिल्ली: बाल विवाह को रोकने के लिए असम सरकार द्वारा की गई सख्त कानूनी कार्रवाई के कारण राज्य (State) में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर बुधवार (17 जुलाई, 2024) को इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन पर एक स्टडी रिपोर्ट टुवार्ड्स जस्टिस : इंडिंग चाइल्ड मैरेज जारी की गई.
इसमें भी कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. असम का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रमुख प्रियंक कानूनगो और बाल विवाह मुक्त भारत के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि पूर्वोत्तर के इस राज्य का मॉडल सभी राज्यों में लागू होना चाहिए.
असम की सरकार ने पिछले कुछ सालों से बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया है. असम मंत्रिमंडल ने कुछ महीने पहले यह फैसला किया था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने वालों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. असम में इस सिलसिले में हजारों प्राथमिकी दर्ज कर बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया है. कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने असम सरकार पर बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं.’
इसके मुताबिक, असम सरकार के अभियान के कारण राज्य के 30 फीसदी गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है, जबकि 40 फीसदी उन गांवों में उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था. रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के इन 20 में से 12 जिलों के 90 फीसदी लोगों ने इस बात पर भरोसा जताया कि इस तरह के मामलों में प्राथमिकी और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाई से बाल विवाह को कारगर तरीके से रोका जा सकता है.