बिलकिस बानो ने SC में कहा, ‘दोषियों की समयपूर्व रिहाई से समाज की अंतरात्मा हिल गई

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नई दिल्ली । बिलकिस बानो ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म के दोषी 11 लोगों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जो कई हत्याओं के भी आरोपी हैं। न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों और उसके परिवार के लिए, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर समाज के लिए भी झटका है। बानो ने अधिवक्ता शोभा गुप्ता के माध्यम से दायर याचिका में कहा, “सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल याचिकाकर्ता, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों और उसके परिवार के लिए, बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के लिए भी एक झटके के रूप में आई। इस मामले में 11 दोषियों को रिहा करके सरकार ने जो अपराधियों के प्रति दया दिखाई, उस पर समाज के सभी वर्गो ने अपना गुस्सा, निराशा, अविश्वास और विरोध प्रकट किया है।”

याचिका में रिहाई के आदेश को यांत्रिक करार देते हुए कहा गया है कि बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए हैं। दलील में कहा गया है कि रिट याचिकाकर्ता सहित सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई की चौंकाने वाली खबर याचिकाकर्ता और जनता के सामने तब आई, जब दोषियों को सम्मानित किया गया और पूरी सार्वजनिक चकाचौंध में उनकी तस्वीरें खींची गईं।

बानो ने कहा कि वह अपने गुनहगारों में से 11 की समय से पहले अचानक रिहाई से बेहद आहत, परेशान और निराशा से भरी हुई है। इन अपराधियोंने पांच महीने की गर्भवती होने के दौरान उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। उन्होंने हिंसा और क्रूरता से उसके शरीर और आत्मा को अत्यधिक पीड़ा दी। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने राज्य (गुजरात) सरकार से सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई से संबंधित कागजात/पूरी फाइल के लिए अनुरोध किया था, लेकिन रिमाइंडर के बावजूद सरकार की ओर से कुछ भी नहीं आया, प्रतिक्रिया तो दूर की बात है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि अभियोजन एजेंसी, सीबीआई और मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने भी दोषियों को समय से पहले रिहाई देने से इनकार कर दिया था, यह देखते हुए कि अपराध जघन्य और भीषण था। 11 दोषियों की रिहाई पर आपत्ति जताते हुए, याचिका में कहा गया है, “अदालत यह मानती है कि उपयुक्त राज्य गुजरात है, न कि महाराष्ट्र, जहां मामले को स्थानांतरित किया गया था। यह याचिकाकर्ता, इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत है।”

बानो ने सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2022 के फैसले की समीक्षा के लिए एक अलग याचिका भी दायर की, जिसने गुजरात सरकार को 10 अगस्त को दोषियों की सजा में छूट पर फैसला लेने की अनुमति दी थी। समीक्षा याचिका में कहा गया है, “समीक्षा की गुहार लगाने के लिए याचिकाकर्ता को बहुत प्रयास करना पड़ा और बहुत समय लगा, जबकि वह इस देश में अब तक के सबसे भीषण और अमानवीय सांप्रदायिक घृणा अपराध में से एक का शिकार है। साहस जुटाने और खुद को फिर से संघर्ष करने के लिए तैयार करने में समय लगा। मकसद यही है कि 17 साल लंबी कानूनी लड़ाई को खत्म करने के बाद यह सुनिश्चित किया जाए कि उसके दोषियों को उनके द्वारा किए गए घोर अपराध के लिए फिर से दंडित किया जाए।”

गुप्ता ने बानो का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। गुप्ता ने तर्क दिया कि संभावना कम है कि न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अगुवाई वाली पीठ मामले की सुनवाई कर पाएगी, क्योंकि वह अब संविधान पीठ की सुनवाई का हिस्सा हैं।प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पहले समीक्षा सुननी होगी और इसे जस्टिस रस्तोगी के सामने आने दीजिए। गुप्ता ने कहा कि मामले की सुनवाई खुली अदालत में होनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केवल अदालत ही यह तय कर सकती है, और कहा कि वह इस मामले को देखने के बाद लिस्टिंग पर फैसला करेंगे।

इस साल मई में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि गुजरात सरकार क्षमा अनुरोध पर विचार कर सकती है, क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था। इस फैसले के आधार पर गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया। हाईकोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र सरकार को छूट पर विचार करना चाहिए, क्योंकि गुजरात से स्थानांतरण के बाद वहां मामले की सुनवाई हुई थी। 11 दोषियों को रिहा करने के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उसने 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि वे 14 साल या उससे अधिक समय जेल में बिता चुके थे और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था और केंद्र ने भी अपनी सहमति/स्वीकृति दे दी थी।

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