CBI ने विजय माल्या को लेकर किया बड़ा खुलासा, कहा- ‘किंगफिशर को कर्ज दिलाने के लिए रची थी साजिश’

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नई दिल्ली: आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने किंगफिशर एयरलाइन (Kingfisher Airlines) को लोन की अनुमति दिलवाने और भुगतान करवाने के लिए शराब व्यवसायी और इस एयरलाइन के मालिक विजय माल्या (Vijay Mallya) के साथ रची थी। मुंबई की एक अदालत में सीबीआई (CBI) द्वारा दाखिल आरोपपत्र में यह बात भी बोली है।

माल्या (Vijay Mallya) 900 करोड़ रूपये के IDBI-किंगफिशर ऋण धोखाधड़ी केस में एक अपराधी है और के सकी कार्रवाई जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा की जा रही है। केंद्रीय एजेंसी ने यहां एक विशेष अदालत के समक्ष हाल में अनुपूरक आरोपपत्र भी दर्ज कर दिया है। आरोपपत्र के मुताबिक IDBI के पूर्व बैंक महाप्रबंधक बुद्धदेव दासगुप्ता ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए अपने सहयोगियों एव माल्या के साथ अक्तूबर 2009 में किंगफिशर एयरलाइन को 150 करोड़ रुपये के अल्पावधि ऋण को अनुमोदन दिलवाने और उसका भुगतान करने के लिए कथित रूप से साजिश भी रच दी थी।

एजेंसी इस केस में पहले ही 11 आरोपियों को नामजद भी कर दी है। पूरक आरोपपत्र के माध्यम से उसने दासगुप्ता को भी नामजद किया है। CBI के अनुसार अल्पावधि ऋण विदेशी सेवा प्रदाताओं के प्रति की गयी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए 6 महीने की अवधि के लिए मांगा गया था। इनमें विमान को पट्टे पर देने वाले एवं अन्य सेवा प्रदाताओं से की गयी प्रतिबद्धताएं भी बताई जा रही है।

खबरों का कहना है कि दासगुप्ता ने मूल रूप से इस 150 करोड़ रूपये के ऋण की परिकल्पना इस प्रकार की थी कि एयरलाइन ने 750 करोड़ रूपये का जो ऋण शुरू में मांग लिया था, उसी में से इस नये कर्ज को समायोजित:भुगतान किया जाने वाला है। CBI का इस बारें में कहना है बहरहाल, प्रस्ताव में परिवर्तन कर दिया गया ताकि यह दर्शाया जा सके कि मानों ऋण समिति ने इसे एक भिन्न कर्ज के रूप में ही लिया है, इसका समायोजन:भुगतान कुल ऋण से किया जा सकता (नहीं भी किया जा सकता) है।

आरोपपत्र में IDBI द्वारा दी गयी राशि कुल 750 करोड़ रूपये तक सीमित रखी जानी थी किंतु अल्पावधि ऋण को दासगुप्ता की शह पर एक अलग ऋण के रूप में रखे जाने की वजह से यह राशि दिसंबर 2009 में बढ़कर 900 करोड़ रूपये हो चुकी है।

जांच के क्रम में CBI अदालत की अनुमति के अनुसार ब्रिटेन, मॉरिशस, अमेरिका एवं स्विटजरलैंड में अनुरोध पत्र भी भेजे जा चुके है। किसी भी देश की अदालत न्याय प्रदान करने के क्रम में इन अनुरोध पत्रों के जरिये किसी अन्य देश के न्यायालय से सहायता भी ली है। आरोपपत्र में इन देशों से मिले साक्ष्यों का भी उल्लेख भी कर दिया है।

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