चंद्रयान-3: समय के साथ दौड़ रहे वैज्ञानिक, मिशन के अंतिम 10 दिनों में रोवर को ज्यादा चलाने की कोशिश

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नई दिल्ली : अंतरिक्ष उपयोग केंद्र अहमदाबाद के निदेशक निलेश एम देसाई ने कहा कि चंद्रयान-3 अभियान के 3 हिस्से हैं। यान की सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing), रोवर प्रज्ञान को लैंडर विक्रम से निकाल कर चंद्र सतह पर चलाना और मिशन में शामिल सात उपकरणों से काम लेना। अब तीसरे हिस्से के तहत असली काम जारी है। इसमें उपकरणों से विभिन्न प्रयोग हो रहे हैं, विश्लेषण व डाटा जुटाया जा रहा है। इसीलिए रोवर को जितना हो सके चंद्र सतह पर घुमाया जाना है, ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर हम बहुमूल्य डाटा जुटा सकें। मिशन के आखिरी 10 दिनों में अधिक काम करने के लिए वैज्ञानिक भी समय के साथ दौड़ लगा रहे हैं।

पृथ्वी के 14 दिन बीतने के बाद चंद्रमा पर अगले 14 पृथ्वी दिवस के बराबर घनी अंधियारी रात आएगी। इस अवधि में यान के कई उपकरण स्लीप मोड में जाएंगे, लेकिन तापमान माइनस 180 से माइनस 250 डिग्री तक गिर सकता है, यान सौर ऊर्जा भी नहीं ले पाएगा। इन कठोर हालात के बावजूद अगर नसीब ने साथ दिया तो लंबी रात बीतने के बाद चंद्रयान-3 के उपकरण रिवाइव हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो हमें दक्षिणी ध्रुव का और डाटा मिल सकेगा।

देसाई के मुताबिक, सभी उपकरणों व प्रयोगों का डाटा लैंडर के जरिये पृथ्वी पर भेजने के साथ इन प्रयोगों को दोहराया भी जाएगा। इस दौरान चास्टे उपकरण से जहां पहली बार मानव द्वारा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का तापमान मापा जा रहा है, वहीं इल्सा उपकरण मून-क्वेक यानी चंद्रमा के भूकंप दर्ज कर रहा है। पृथ्वी की तरह ही चंद्रमा पर भूकंप आते हैं। ऐसे कई रहस्य सुलझाने में चंद्रयान-3 के उपकरणों से मिली जानकारियां मदद करेंगी।

देसाई ने खुलासा किया कि भारत को इस मिशन में अमेरिका की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला (जेपीएल) के गोल्डस्टोन गहन अंतरिक्ष संपर्क स्टेशन की सेवाएं नहीं मिल पाई हैं। इस वजह से रोवर से संपर्क व मूवमेंट के दौरान शुरुआत में दृश्यता की कुछ समस्याएं आई हैं। इसी वजह से रोवर को रोज 30 मीटर चलाने के बजाय मूवमेंट 12 मीटर हुआ।

चंद्रमा पर अपना यान उतारने के बाद भारत अब सूर्य के अध्ययन के लिए दो सितंबर की सुबह 11:50 बजे आदित्य एल1 अभियान भेजेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को इसकी घोषणा की। साथ ही बताया कि श्री हरिकोटा से इस प्रक्षेपण की सभी तैयारियां हो चुकी हैं। आदित्य एल 1 पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर सूर्य के हेलो ऑर्बिट में स्थापित होगा। हेलो ऑर्बिट दो आकाशीय संरचनाओं के गुरुत्वाकर्षण बल के बीच बनता है। इसरो ने कहा, आम नागरिक इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए श्री हरिकोटा स्थित प्रक्षेपण दर्शक दीर्घा में आमंत्रित हैं। इसमें शामिल होने के लिए पंजीकरण शुरू हो गया है।

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