नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पीएम मोदी की डिग्री मामले में गुजरात हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली है. न्यायालय ने गुरुवार (9 नवंबर) को केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के गुजरात विश्वविद्यालय को दिए गए निर्देश को रद्द करने के आदेश पर समीक्षा करने की अपील की थी.
इससे पहले न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की पीठ ने समीक्षा याचिका को लेकर 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गौरतलब है कि 31 मार्च को जस्टिस वैष्णव ने सीआईसी के उस ऑर्डर को रद्द कर दिया था, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को आरटीआई के तहत अरविंद केजरीवाल को पीएम मोदी की शैक्षिक डिग्रियों की जानकारी देने का निर्देश दिया गया था. इसके अलावा कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था.
केजरीवाल की समीक्षा याचिका में उल्लेखित प्रमुख दलीलों में से एक यह भी थी कि पीएम मोदी की डिग्री ऑनलाइन उपलब्ध होने के गुजरात विश्वविद्यालय के दावे के विपरीत, विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
केजरीवाल की ओर से पेश होते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता पर्सी कविना ने न्यायमूर्ति वैष्णव के समक्ष दलील दी कि केजरीवाल हमेशा से ही कार्यवाही को जल्द से जल्द निपटाने की मांग करते थे और मुकदमे को लंबा खींचने में उनकी कभी कोई दिलचस्पी नहीं थी.
उन्होंने आगे तर्क दिया कि गुजरात यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज (पीएम मोदी की) डिग्री नहीं है, बल्कि बीए (पार्ट II) परीक्षा के कुछ अंकों का ऑफिस रिकॉर्ड है और यह मामला उनकी एमए डिग्री को लेकर है, न कि बीए डिग्री का. उन्होंने अपनी दलील में इस बात पर जोर दिया कि डिग्री कोई मार्कशीट नहीं है, जबकि यूनिवर्सिटी का यह तर्क कि संबंधित डिग्री इंटरनेट पर पहले से ही उपलब्ध है, जोकि गलत है.
दूसरी ओर गुजरात विश्वविद्यालय की ओर से पेश होते हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि केजरीवाल की समीक्षा याचिका सिर्फ मामले को गर्म रखने और बिना किसी कारण के विवाद को खड़ा करने की एक कोशिश थी.
उन्होंने आगे कहा कि तत्काल समीक्षा याचिका दायर करने के लिए भी दिल्ली के मुख्यमंत्री पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए था, क्योंकि मामले में उचित उपाय अपील दायर करना था न कि समीक्षा याचिका दाखिल करना. उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि यूनिवर्सिटी किसी तीसरे व्यक्ति को किसी छात्र का पर्सवल डिटेल या जानकारी देने के बाध्य नहीं है.