नई दिल्ली: दुनिया के सबसे ज्यादा खून-खराबे वाली लड़ाई में एक मानी जाती है स्टालिनग्राद (battle of stalingrad) की लड़ाई। इसमें सोवियत संघ के 5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। जबकि, 2 लाख 50 हजार तक जर्मनी सैनिकों की मौत हुई। एक लाख जर्मन सैनिकों को बंदी भी बनाया गया था। बात 80 साल पहले की है, जब नाजी जर्मन सैन्य टुकड़ी के सरेंडर के साथ सोवियत संघ ने स्टालिनग्राद की लड़ाई जीत ली थी। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध का रुख पूरी तरह बदल गया। रूस ने युद्ध की सालगिरह पर यूक्रेन पर हमले (ukraine russia war update) को जायज ठहराया है। स्टालिनग्राद युद्ध की 80वीं वर्षगाँठ पर 2 फरवरी को एक भाषण में पुतिन ने कहा कि आज इतिहास खुद को दोहरा रहा है। पहले भी हमे जर्मनी के नाम से डराया गया और आज भी यूक्रेन में जर्मनी के टैंकों को खतरनाक बताकर हमे डराया जा रहा है।
स्टालिनग्राद एक ओद्योगिक शहर था, जो तत्कालीन सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन के नाम पर रखा गया था। इसे जीतने के लिए स्टालिन और अडोल्फ हिटलर ने पूरा जोर लगा दिया। बात यहां पर दोनों की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी हुई थी।
स्टालिनग्राद दुनिया की सबसे क्रूर और खून-खराबे वाली लड़ाई मानी जाती है। इस जंग में सोवियत संघ के पांच लाख से ज्यादा लोग मारे गए। इनमें सैनिकों के साथ-साथ सामान्य नागरिक भी शामिल थे। इसकी वजह यह थी कि स्टालिन ने युद्ध क्षेत्र से आम नागरिकों को सुरक्षित जगहों पर नहीं भेजा। लड़ाई के शुरुआती दिनों में जर्मन हवाई हमलों में 40 हजार से अधिक लोग मारे गए। जर्मनी के आत्मसमर्पण तक स्टालिनग्राद में रहने वाले करीब 75 हजार नागरिकों में कई भूख और हाइपोथर्मिया से मर गए।
वहीं, दूसरी ओर स्टालिनग्राद में 1,50,000 से लेकर 2,50,000 जर्मन मारे गए। युद्ध बंदियों के तौर पर सोवियत संघ में कैद किए गए 1,00,000 जर्मन में से महज 6,000 ही 1956 तक वापस जर्मनी लौटे। रूस ने हाल ही में स्टालिनग्राद की लड़ाई के 80 साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम की मेजबानी की। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्टालिनग्राद की लड़ाई की तुलना यूक्रेन जंग से की है। यूक्रेन में टैंक भेजने के जर्मनी के फ़ैसले का हवाला देते हुए पुतिन ने कहा कि इतिहास ख़ुद को दोहरा रहा है। उन्होंने कहा, “ये अविश्वसनीय है लेकिन सच है. हमें एक बार फिर जर्मनी के टैंक से डराया जा रहा है।”
क्या हुआ था स्टालिनग्राद की लड़ाई में
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नाजी जर्मन सेना वेयरमाख्त का इरादा औद्योगिक शहर स्टालिनग्राद को जीतने का था। स्टालिनग्राद पर जर्मनी की सेना का हमला शुरू से ही जोखिम भरा था। वजह यह थी कि यहां पर युद्ध से जुड़े सामानों की आपूर्ति के लिए सेना को लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। नाजी जर्मनी द्वारा पहली बार सोवियत संघ पर हमला करने के लगभग एक साल बाद, जनरल फ्रेडरिक पॉलुस के नेतृत्व में वेयरमाख्त ने अगस्त 1942 के मध्य में स्टालिनग्राद पर हमला किया था। इसके बाद हिटलर ने दावा किया था, “रूसी थक चुके हैं।” हिटलर की यह सोच पूरी तरह गलत साबित हुई।
गलत साबित हुई हिटलर की सोच
कड़े संघर्ष के बावजूद, वेयरमाख्त नवंबर 1942 के मध्य तक स्टालिनग्राद के अधिकांश इलाकों को जीतने में सफल रहा। हालांकि, इस समय तक सोवियत सेना ने जर्मन सैनिकों को घेरने के लिए दोतरफा हमला शुरू कर दिया था। नवंबर के अंत में, रेड आर्मी ने जर्मनी की सेना और टैंक ब्रिगेड के करीब तीन लाख जर्मन सैनिकों को घेर लिया। इसके बावजूद हिटलर का आदेश था कि वे अपनी जगह पर डटे रहें। इसी तरह, स्टालिन ने भी जुलाई में अपनी सेना से कहा था कि वे ‘अपनी जगह से एक इंच भी न हिलें।’
बीमारी से मरने लगे जर्मन सैनिक
दोनों तरफ के सैनिक अपनी जगहों पर डटे रहे और जल्द ही चौतरफा घिर चुकी जर्मन सेना की स्थिति बिगड़ने लगी। कई हफ्तों तक जर्मन हवाई सेना लुफ्टवाफे ने जरूरी सामानों की आपूर्ति करने का प्रयास किया, लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। जैसे-जैसे सोवियत संघ की रेड आर्मी आगे बढ़ती गई, जर्मन सेना तक आपूर्ति कम होने लगी। फिर सर्दी आ गई। तापमान लुढ़ककर -30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। नतीजा ये हुआ कि जर्मनी के कई सैनिक लड़ाई में नहीं, बल्कि भूख और हाइपोथर्मिया की वजह से मर गए।