जी7 देशों में कोयला आधारित बिजलीघरों को खत्म करने पर बनी सहमति, लेकिन कुछ शर्तें भी लागू

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नई दिल्‍ली : जी7 देशों में कोयला आधारित बिजलीघरों को खत्म करने पर अहम सहमति बनी है. हालांकि, इसमें “शर्तें लागू” की गुंजाइश भी छोड़ी गई है. कोयला छोड़ने के संकल्प में “अनअबेटेड कोल” की बात की गई है. इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन को वातावरण में प्रवेश से रोकने के लिए कोयला आधारित बिजलीघरों के पास कार्बन कैप्चर तकनीक हो, तो वे कोयला जलाना जारी रख सकते हैं. ऐसे में जिन देशों की कोयले पर बहुत अधिक निर्भरता है, वो इस जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल खत्म करने की तय समयसीमा लांघ सकेंगे. जी7 सात विकसित देशों का समूह है, जिसमें जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, इटली और जापान शामिल हैं.

कोयला का इस्तेमाल करने वाले बिजलीघरों से दूरी बनाने पर इन देशों के बीच लंबे समय से वार्ता हो रही थी, लेकिन किसी सहमति पर नहीं पहुंचा जा सका था. कोयले से दूरी बनाना जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से प्रयोग के बाहर करने, इससे निर्भरता घटाने और ऊर्जा के भंडारण की क्षमता बढ़ाकर हरित ऊर्जा स्रोतों के ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल की दिशा में जरूरी कदम माना जाता है. क्या संकल्प लिया गया अब इटली के टुरिन शहर में जी7 देशों के मंत्रियों की दो-दिवसीय बैठक में संकल्प लिया गया कि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के लिए ये देश साल 2035 तक निर्बाध चलने वाले कोयला बिजलीघरों का इस्तेमाल बंद करेंगे. जलवायु परिवर्तन से निपटने और ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दिशा में इन विकसित अर्थव्यवस्थाओं का यह संकल्प बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है.

हालांकि, कई आलोचकों का कहना है कि यह फैसला बहुत पहले लिया जाना चाहिए था. इस साल इटली जी7 की अध्यक्षता कर रहा है. टुरिन में हुई बैठक की अध्यक्षता कर रहे इटली के पर्यावरण और ऊर्जा सुरक्षा मंत्री जीलबैरतो पिकैत्तो फ्रातें ने कोयला बिजलीघरों पर लिए गए संकल्प की अहमियत रेखांकित करते हुए कहा, “यह पहली बार है कि कोयले पर एक राह और मंजिल तय हुई है. औद्योगिक देशों की ओर से यह बहुत मजबूत संकेत है. यह दुनिया को कोयला घटाने के लिए बहुत बड़ा संकेत है” जी7 के मुताबिक, उनका मसौदा इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के 'नेट-जीरो रोडमैप' के मुताबिक है. क्या है नेट-जीरो रोडमैप मई 2021 में आईईए ने एक अहम रिपोर्ट जारी की थी. इसका शीर्षक था, 'नेट-जीरो एमिशंस: अ रोडमैप फॉर दी ग्लोबल एनर्जी सेक्टर'. इसमें पेरिस जलवायु सम्मेलन में तय किए गए डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक कमोबेश व्यावहारिक रास्ता बताया गया था. इसपर चलकर वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र साल 2050 तक नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल कर ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने में बड़ा योगदान दे सकता है.

इस नेट-जीरो रोडमैप को क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के क्रमन में अहम मापदंड माना जाता है. इस रणनीति में ना केवल कोयला आधारित बिजलीघरों का इस्तेमाल खत्म करने की बात कही गई है, बल्कि नई कोयला खदानें ना शुरू करने और पुरानी खदानों में खुदाई आगे ना बढ़ाने पर भी जोर है. आईईए 2030 तक कोयले को और 2035 तक प्राकृतिक गैस को फेज-आउट करने की अनुशंसा करता है. ऐसे में कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि जी7 साल 2035 तक ऊर्जा क्षेत्रों को डीकार्बनाइज करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं बन सका है. 'बियॉन्ड फॉसिल फ्यूल' जीवाश्म ईंधन छोड़ने और 2035 तक अक्षय ऊर्जा आधारिक यूरोपीय ऊर्जा व्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के अभियान से जुड़ा एक समूह है. इसने जी7 देशों के ताजा संकल्प को संदिग्ध बताया है. समूह से जुड़ीं कार्यकर्ता क्लैर स्मिथ ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, “जी7 मंत्रियों को मिसाल पेश करनी चाहिए. उन्हें अपनी प्रतिबद्धताओं को सच्चाई और जलवायु संकट की आपात स्थिति के मुताबिक ढालना चाहिए” जीवाश्म ईंधनों से निर्भरता घटा रहा है जर्मनी जी7 देशों में ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और कनाडा 2030 तक कोयले को फेज-आउट करने की बात कह चुके हैं. जर्मनी और अमेरिका भी इस समयसीमा को निभाने की दिशा में बड़े कदम उठा रहे हैं. अकेला जापान है, जिसने अब तक चरणबद्ध तरीके से कोयला का इस्तेमाल खत्म करने की कोई सीमा तय नहीं की है.

एक अध्ययन के मुताबिक, 2022 के मुकाबले 2023 में जर्मनी के कार्बन उत्सर्जन में सवा सात करोड़ टन से ज्यादा की कमी आई. जर्मनी में कोयले पर निर्भरता घटाने में उम्मीद से ज्यादा तेजी दिखा रहा है. 2023 में यहां कोयले से बनने वाली बिजली 34 फीसदी से घटकर 26 फीसदी पर आ गई. एनर्जी थिंक टैंक 'अगोरा एनर्गीवेंडे' के एक अध्ययन से पता चला कि 2023 में कोयले के कम इस्तेमाल के कारण जर्मनी के कार्बन उत्सर्जन में साढ़े चार करोड़ टन से ज्यादा की कमी आई. जर्मनी में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी काफी सफलता मिल रही है. 2023 में पहली बार कुल बिजली उत्पादन का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल हुआ. जर्मनी ने 2030 तक अपने पवन ऊर्जा फार्मों से ऊर्जा उत्पादन को चार गुना करने का लक्ष्य रखा है. जर्मनी ना केवल जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को तेजी से घटा रहा है, बल्कि जर्मन सरकार के जलवायु लक्ष्यों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार की भी अहम भूमिका है.

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