नई दिल्ली : इस सत्र में रिकॉर्ड पैदावार होने के बावजूद गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं। इसकी वजह कुछ राज्यों में कम उत्पादन है। इसका मतलब केंद्र सरकार अपने खरीद लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकेगी। ऐसे में गेहूं के आयात पर लगा प्रतिबंध हटाया जाएगा या कीमतें और बढ़ेंगी। दरअसल, फरवरी में कृषि मंत्रालय ने कहा था कि उसे 2024 में 11.2 करोड़ टन फसल की उम्मीद है, जो एक रिकॉर्ड है। वैसे, यह 2021 की फसल से थोड़ा अधिक है, जिसका अनुमान 11 करोड़ टन है।
2022 और 2023 में जलवायु झटकों यानी लू और बेमौसम बारिश ने उत्पादन को प्रभावित किया था, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के भंडारण में कमी आई। चालू वर्ष में कुछ राज्यों-खास तौर पर मध्य प्रदेश में गर्म सर्दियों के चलते पैदावार प्रभावित हुई। उपभोक्ता मामलों के विभाग के डाटा से मालूम पड़ता है कि थोक गेहूं की कीमतें वर्तमान में 5.3 प्रतिशत अधिक हैं। जबकि, उपभोक्ता कीमतें 6.5 प्रतिशत (27 मई तक) बढ़ गईं हैं।
सरकारी एजेंसियां किसानों से गेहूं तीन उद्देश्यों से खरीदती हैं। इसके तहत 81 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न योजना के तहत गेहूं आपूर्ति करती है। भविष्य के लिए भंडारण बनाए रखती और कीमतों को नियंत्रित करने को बाजारों में हस्तक्षेप करने के लिए इसका एक हिस्सा इस्तेमाल करती हैं। 24 मई तक सरकारी एजेंसियों ने 26 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा, जो बीते साल की तुलना में थोड़ा अधिक है।
हालांकि, यह लगातार तीसरे साल लक्ष्य यानी 30-32 मीट्रिक टन से कम रहने का अंदेशा है। मध्य प्रदेश में खरीद में भारी गिरावट आने से खरीद लक्ष्य से कम है। किसान अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेच रहे हैं, क्योंकि प्रीमियम किस्मों से उन्हें अधिक कीमत मिल रही है।
यह सुरक्षित भंडार और आगामी महीनों में कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। 2022 से गेहूं के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन अमेरिकी कृषि विभाग का कहना है कि घरेलू मांग, सरकारी भंडारण में गिरावट और कमजोर वैश्विक कीमतों के चलते भारत को दो मीट्रिक टन गेहूं आयात करना पड़ सकता है। ऐसा छह साल के बाद होगा।
किसानों को सरकार से 2,275 प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलता है, लेकिन प्रीमियम गेहूं की किस्मों के बाजार मूल्य एमएसपी यानी 2,600 रुपये-3,200 रुपये प्रति क्विंटल से काफी ज्यादा हैं। बाजार मूल्य इसलिए भी ज्यादा हैं, क्योंकि मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे कुछ राज्य एमएसपी के अलावा 125 प्रति क्विंटल का बोनस दे रहे हैं, इसलिए किसान अपनी फसल रोके हुए हैं। किसान आने वाले महीनों में अधिक कीमतों की उम्मीद कर रहे हैं।
उपभोक्ता मामलों विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि गेहूं की खुदरा महंगाई 6.5 प्रतिशत है। चावल (13.3 प्रतिशत), तुअर दाल (29 प्रतिशत) और आलू, टमाटर और प्याज (43 प्रतिशत से 49 प्रतिशत के बीच) की तुलना में अभी भी सौम्य है। वहीं, अप्रैल में 8.7 प्रतिशत की समग्र खाद्य महंगाई की तुलना में गेहूं की कीमतों में मामूली वृद्धि दर्ज हुई है, लेकिन फसल के मौसम (मार्च से मई) के दौरान कीमतें कम होती हैं, जब किसान अपनी फसल बाजार में लाते हैं। ऐसे में आने वाले महीनों में आपूर्ति में वृद्धि कम होने से गेहूं की कीमतें बढ़ सकती हैं।