उत्तरकाशी : चार धामों में यमुनोत्री धाम के कपाट 22 अप्रैल यानी अक्षय तृतीया को आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल जायेंगे. इसके बाद अगले छह महीने तक आम श्रद्धालु यमुनोत्री धाम में पहुंचकर यमुना के दर्शन कर सकते हैं. इसी के साथ हम यमुना की उत्पत्ति और इतिहास के साथ-साथ महत्व को बताने जा रहे हैं. पुराणों के अनुसार यमुनोत्री को मां यमुना की जन्म स्थली माना जाता है. कहा जाता है कि कनिंदी पर्वत में सबसे पहले यमुना की जलधारा यमुनोत्री में निकली थी. यही कारण है कि यमुनोत्री को यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है.
कहा जाता है कि भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि महाराज ने यमुनोत्री के पास कठोर तपस्या कर यमुना जी को यमुनोत्री में अवतरित किया. यही कारण है कि यमुना जी का दूसरा नाम जमदग्नि ऋषि के कारण जमुना जी भी कहते हैं. यमुना जी सूर्य पुत्री है और शनि देव की बहन हैं, सूर्य भगवान की दो पत्नियों में यमुना जी संघ्या की पुत्री है जबकि दूसरी पत्नी छाया से शनि महाराज हुए, कहा जाता है कि यमुनोत्री में स्थित दिव्या शिला सबसे प्राचीन शिला है जिसमें यमुना मां ने सूर्य भगवान की तपस्या कर एक किरण का वरदान मांगा जिस किरण से यमुनोत्री में दिव्या शिला के पास का जल गर्म रहता है और आज भी श्रद्धालु इस दिव्य शिला के पास चावल को पोटरी में पकाकर प्रसाद के रूप में घर लेकर जाते हैं.
कहा जाता है कि इसी शिला से गर्म पानी कुंड में आता है जिसे सूर्य कुंड या गर्म कुंड भी कहा जाता है जिसमें स्नान करने मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. यह मान्यता है कि जो भी प्राणी दिव्या शिला के पास बैठकर यमुना मां की स्तुति और ध्यान करता है वो शनि और यम की यातना से मुक्त हो जाता है. मां यमुना इन दिनों अपने मायके यानी शीतकालीन प्रवास खरशाली गांव में स्थित यमुना मंदिर में विराजमान है, जहां मां की स्तुति मायके पक्ष में रहने वाले उनियाल परिवारों में एक सदस्य को पुजारी के रूप में चयनित किया जाता है और वो ही इन दिनों मां यमुना की आरती स्तुति रोजाना सुबह और शाम को भैया दूज के बाद शीतकाल के छह माह तक करते रहते हैं जबकि अक्षय तृतीया को जब यमुनोत्री कपाट खुलते हैं तो मां यमुना जी की भोग मूर्ति ग्रीष्म काल के दौरान यमुनोत्री धाम में विराजमान रहती है जहां श्रद्धालु जन मां यमुना के दर्शन कर सकते हैं.