तेजी से बढ़ते वाहनों के कारण हिमालय की हवा प्रदूषित हो चुकी है। ताजा शोध में सामने आया है कि हवा में 80 फीसदी कार्बन का हिस्सा जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल के धुंए से फैल रहा है। पर्यटकों का बड़े पैमाने पर आवागमन इसका प्रमुख कारण है। 20 फीसदी हिस्सा सेकेंड्री सोर्स यानी बायोमास के जलने का है।
आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के शोधकर्ताओं और दिल्ली विश्वविद्यालय ने चार साल तक हिमालय के जटिल और प्राचीन भूभाग पर कार्बन युक्त एरोसोल का अध्ययन किया है। जिसमें पता चला कि हिमालय में वायु प्रदूषण पर जीवाश्म ईंधन के जलने का असर पूरे साल पड़ रहा है।
शोध का नेतृत्व डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव ने किया। जिसमें हिमालय की हवा में उपस्थित हर तरह के कार्बन की विभिन्न तरंग दैर्ध्य पर ऑप्टिकल अवशोषण में जांच की गई। शोध में सामने आया कि हिमालय में गाड़ियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
इससे हवा में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी बहुत अधिक बढ़ गई है। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार यह अध्ययन हिमालय के स्वास्थ्य और जलवायु में आ रहे बदलावों को समझने में मदद करेगा। अध्ययन के परिणामों से आगे की रणनीति बनाई जा सकेगी।
उत्तराखंड और हिमाचल में दस साल में 200 गुना बढ़ी वाहनों की आवाजाही
शोध के अनुसार उत्तराखंड और हिमाचल में बीते दस सालों में वाहनों की आवाजाही 200 गुना से अधिक बढ़ गई है। ऑल वेदर रोड बन रही है। इस कारण लोग अपनी गाड़ियों से सीधे बदरीनाथ, केदारनाथ, आदि कैलास से लेकर हिमाचल तक के सीमांत इलाकों और पर्यटन स्थलों तक पहुंच रहे हैं। ट्रैफिक जाम नई समस्या बन गया है। उत्तराखंड में बीते साल 80 लाख से अधिक पर्यटक पहुंचे थे।